राज्य सरकार को भेजे गए जबाव में आयोग ने यह तो माना है कि परीक्षा में भील आदिवासी समाज से जुड़ा सवाल विवादित था। लेकिन इसके लिए आयोग ने सीधे तौर पर अपनी गलती नहीं मानी। सरकार को बताया गया कि पेपर सेटर और मॉडरेटर को नोटिस देकर जबाव मांगा गया है। साथ ही दोनों सभी परीक्षाओं से ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया है। लेकिन आयोग ने यह नहीं बताया गया कि विवादित सवाल पूछे जाने पर आयोग के अफसरों की जिम्मेदारी क्या है। यदि ऐसा होता है तो आयोग के जिम्मेदार अफसर पर क्या कार्यवाही होती है। इसके लिए नियम भी नहीं बताए गए हैं।
मंत्री ने नियमों के साथ मांगी जानकारी –
सामान्य प्रशासन मंत्री ने विभाग को भेजी फाइल में कहा गया है कि आयोग के नियमों के साथ पूरी जानकारी भेजी जाए। प्रश्न पत्र तैयार होने के बाद उसका परीक्षण भी होता है। यह भी देखा जाता है कि पूछे गए सवाल कैसे हैं। इसके लिए आयोग के नियमों में कोई न कोई प्रावधान होगा। ऐसे में सचिव और अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी पूछी गई है।
सामान्य प्रशासन मंत्री ने विभाग को भेजी फाइल में कहा गया है कि आयोग के नियमों के साथ पूरी जानकारी भेजी जाए। प्रश्न पत्र तैयार होने के बाद उसका परीक्षण भी होता है। यह भी देखा जाता है कि पूछे गए सवाल कैसे हैं। इसके लिए आयोग के नियमों में कोई न कोई प्रावधान होगा। ऐसे में सचिव और अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी पूछी गई है।
यह है मामला —
प्रदेशभर में एमपीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा आयोजित हुई। इसमें जनरल एप्ट्यिूट के पेपर में गद्यांश के आधार पर प्रश्न पूछे गए जिसमें भील जनजाति को लेकर भी एक गद्यांश था। इसमें लिखा गया है कि भीलों की आपराधिक प्रवृत्ति का एक कारण यह भी है कि सामान्य आय से अपनी देनदारियां पूरी नहीं कर पाता। धन उपार्जन की आशा में वह गैर वैधानिक व अनैतिक काम करने में भी शामिल हो जाता है। ऐसे सवाल पूछे जाने पर आदिवासी और भील समाज ने इसे अपना अपमान बताया। विधानसभा में भी इसकी गूंज हुई। मुख्यमंत्री ने पूरे मामले के जांच के आदेश दिए।