जिम्मेदार नागरिक होने के नाते क्या कभी खुद हमने इसे रोकने की पहल की। कानून किशोर न्याय बालकों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम 2015 के अनुसार बच्चे को नशा बेचने पर (धारा 77) के अनुसार सात साल तक की सजा का प्रावधान है, फिर भी राजधानी में बच्चों को धड़ल्ले से नशा बेचा जा रहा है। आप शहर के किसी भी कोने में चले जाएं बच्चे को नशा आसानी से उपलब्ध होता है।
नशा केवल शराब की दुकान पर मिलने वाली चीज नहीं है, बल्कि यह पान की दुकानों, गुमठियों पर भी मिल रहा है। आप यकीन नहीं मानेंगे पर हम जिस दुकान से पान खरीदते हैं, उसी दुकान से आपका बच्चा सिगरेट, गुटखा, तम्बाकू आदि खरीदता है। पत्रिका की पड़ताल में पता चला कि इसके लिए कानून तो है पर सख्ती से पालन नहीं हो रहा। एक नागरिक होने के नाते आप भी बहुत कुछ कर सकते हैं। वक्त है सिटीजन का पुलिस बनने का, आपकी सूचना कई बच्चों को नशे से दूर कर सकती है और भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं।
बच्चों से नशा सामग्री बिकवाना अपराध
किसी बालक का किसी मादक लिकर, स्वापक औषधि या मन: प्रभावी पदार्थ के विक्रय,फुटकर क्रय-विक्रय, उसे साथ रखने, उसकी आपूर्ति करने या तस्करी करने के लिए उपयोग किया जाना- धारा 78 के तहत नशीली सामग्री बिकवाना या तस्करी कराने सात साल तक की सजा हो सकती है और एक लाख रुपए तक के जुर्माने से भी दण्नीय होगा।
किसी भी व्यक्ति या बालक को नशा चढऩे के बाद उसके सोचने समझने की इच्छा शक्ति कम होती चली जाती है और दिमाग में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं। नशे के बाद लोगों को इसके कारण होने वाले हादसों और रिस्क का परिणाम क्या होगा इसका पता नहीं होता है। इसके साथ ही उसमें जोश बढ़ता जाता है। हो सकता है सामान्य हालत में व्यक्ति या बालक अपराध न करे।
डॉ. जगमीत कौर चावला, शिशुरोग एवं किशोर अवस्था विशेषज्ञ
आप भी बनें सिटीजन पुलिस
वक्त है सिटीजन का पुलिस बनने का, जहां आपकी एक सूचना कई बच्चों को नशे से दूर कर सकती है। आपकी यह जानकारी गोपनीय रखी जाएगी। शुरुआत के लिए आप अपना ही मोहल्ला चुन लीजिए। इसके लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है। इस तरह यदि हर मोहल्ले से यह मुहिम फैल जाए तो पूरा शहर बच्चों के लिए नशा मुक्त हो जाएगा। इसके साथ ही नशे में बच्चों द्वारा किए जा रहे अपराध भी रुकेंगे।
नहीं है नशामुक्ति केंद्र
एक बार बच्चा नशे की गिरफ्त में आ जाए तो उसकी लत छुड़ाने नशामुक्ति केंद्र की जरूरत होती है, ताकि बच्चे को नशे की गिरफ्त से बाहर निकाला जा सके। शहर में बच्चों के लिए सरकारी नशामुक्ति केंद्र नहीं होने से इन्हें नशे की गिरफ्त से निकालना मुश्किल होता है। ऐसे बच्चों की चाइल्ड लाइन काउंसलिंग तो करता है पर यह बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता, उसे लंबे समय तक उपचार की जरूरत होती है, जो नशामुक्ति केंद्र से ही संभव हो सकता है। केंद्र स्थापित होने से नशे की गिरफ्त में जो बच्चे हैं, उनका भविष्य सुधारना संभव हो पाएगा।
अभी हमारे पास नशा मुक्ति केंद्र की कोई व्यवस्था नहीं है। हम बच्चों को रायपुर भेजते हैं। हमने कलेक्टर से बात की है। एक नशामुक्ति केंद्र कोअटेंडिफाई किया है। उसके पेपर हम कलेक्टर को भेज कर प्रयास कर रहे हैं कि भोपाल में एक नशामुक्ति केंद्र की व्यवस्था हो जाए।
डॉ. कृपाशंकर चौबे, सीबीसी मेम्बर
बच्चों के अंदर नशे की प्रवृत्ति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, क्योंकि नशे की चीजें बच्चे को आसानी से उपलब्ध होती हैं। नशा बेचने वाले इसे बच्चों को देना बंद कर दें तो इनके आदत में कमी आएगी। ऐसे लोगों पर पुलिस को सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि बच्चों को नशा मिलना बंद हो जाए।
अर्चना सहाय, डायरेक्टर, चाइल्ड लाइन भोपाल