विधानसभा चुनाव 2018 से बदले सियासी समीकरण के आधार पर कांग्रेस को आधी सीटें जीतने की उम्मीद है। वहीं, भाजपा अपनी सात सीटें बचाए रखने के अलावा रतलाम पर भी नजर गढ़ाए हुए है। सियासी दलों का पूरा जोर अब इन्हीं सीटों पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी मध्यप्रदेश पर फोकस कर रही हैं।
धार, अनुसूचित जनजाति
इस लोकसभा सीट की छह विधानसभा सीटें कांग्रेस और दो भाजपा के पास हैं। 2014 में भाजपा की सावित्री ठाकुर 1.04 लाख मतों से जीतकर सांसद बनी थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी 2.20 लाख वोटों से पीछे हो गई है। इस बार भाजपा ने सावित्री का टिकट भी काट दिया है। यहां छतर सिंह दरबार और कांग्रेस के दिनेश गिरवाल में चुनावी टक्कर है।
इंदौर, सामान्य
इस सीट पर इस बार सुमित्रा महाजन की जगह भाजपा ने शंकर लालवानी को प्रत्याशी बनाया है। पिछले लोकसभा चुनाव में सुमित्रा महाजन 4.66 मतों से जीतीं थीं। अब ये लीड घटकर 95 हजार की हो गई है। यहां की चार विधानसभा सीटें कांग्रेस और चार भाजपा के पास हैं। कांग्रेस ने यहां से पंकज संघवी को प्रत्याशी बनाया है।
खंडवा, सामान्य
इस सीट की चार विधानसभा सीटें कांग्रेस और चार भाजपा के पास हैं। यहां से नंदकुमार सिंह चौहान पिछला चुनाव 3.28 लाख मतों से जीते थे। अब 70 हजार का अंतर रह गया है। भाजपा ने एक बार फिर नंदकुमार सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने अरुण यादव को फिर मौका दिया है।
मंदसौर, सामान्य
इस सीट से मौजूदा सांसद सुधीर गुप्ता पिछला चुनाव 3.03 लाख मतों से जीते थे। ये अंतर घटकर अब 77 हजार का रह गया है। यहां की आठ विधानसभा सीटों में से छह सीट कांग्रेस के पास हैं, जबकि सिर्फ दो सीटों पर कांग्रेस काबिज है। भाजपा ने सुधीर गुप्ता को फिर प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने दोबारा मीनाक्षी नटराजन को टिकट दिया है।
उज्जैन अनुसूचित जाति
भाजपा के चिंतामणि मालवीय ने 2014 में कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को 3.09 लाख वोटों से करारी शिकस्त दी थी। विधानसभा चुनाव ने इस बढ़त को एक चौथाई से भी कम कर दिया है। अब यहां पर भाजपा सिर्फ 69 हजार मतों से आगे है। कांग्रेस के पास पांच विधानसभा क्षेत्र हैं, जबकि भाजपा के पास सिर्फ तीन सीटें हैं। यहां भाजपा ने चिंतामणि मालवीय का टिकट काटकर विधानसभा चुनाव हारे अनिल फिरोजिया को दिया है। वहीं, कांग्रेस ने बाबूलाल मालवीय को मैदान में उतारा है।
खरगोन, अनुसूचित जनजाति
इस लोकसभा सीट के एक विधानसभा क्षेत्र में ही भाजपा जीत दर्ज कर पाई है। एक विधानसभा सीट निर्दलीय के पास तो छह सीटें कांग्रेस के खाते में हैं। 2014 में भाजपा के सुभाष पटेल 2.57 लाख मतों से चुनाव जीते थे, लेकिन वे अब 10 हजार वोटों से पीछे हो गए हैं। भाजपा ने सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र पटेल को थमा दिया। कांग्रेस ने यहां डॉ. गोविंद मुजाल्दा को उतारा है।
रतलाम, अनुसूचित जनजाति
कांग्रेस का गढ़ रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट 2014 की मोदी लहर में ढह गया था। 2015 के उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने फिर कांग्रेस का झंडा फहराया था। इस क्षेत्र में पांच विधानसभा सीट कांग्रेस के पास तो तीन भाजपा के पास हैं। उपचुनाव में भूरिया 60 हजार वोटों से जीते थे, लेकिन अब उनकी बढ़त 29 हजार मतों की है। कांग्रेस ने कांतिलाल को फिर उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने विधायक जीएस डामोर को मैदान में उतारा है।
देवास, अनुसूचित जाति
2014 में भाजपा के मनोहर उंटवाल ने कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा को 2.60 लाख मतों से हराया था, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा 40 हजार वोटों से पिछड़ गई है। यहां की चार विधानसभा सीटें कांग्रेस के हिस्से में आ गई हैं, जबकि भाजपा के पास चार सीटें ही बची हैं। भाजपा ने जज की नौकरी छोडकऱ आए महेंद्र सोलंकी को उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने कबीरपंथी भजन गायक पद्मश्री प्रहलाद टिपाणिया को टिकट दिया है।