सिस्टम का शिकार हो रहे मरीजों और परिजनों का कहना है कि हर बार चुनावों में वादे तो किए जाते हैं, पर सरकार बनते ही जनता की सेहत हाशिए पर डाल दी जाती है। आम लोगों के लिए तो सरकारी अस्पताल ही हैं, लेकिन उनकी दशा नहीं सुधर सकी है।
एम्स: अब जोन सरकार आए, हम गरीबन की सुनवाई करे…
ए म्स अस्पताल में रात 11.30 बजे मरीजों की कतारें लगी थींं। छतरपुर से आए परमलाल अहिरवार ने पीड़ा जाहिर की…जे कल के इलाज के लाने पर्चा बन रहो है,
आठ बजे से लगे हैं। भैया इते ना रुकबे को कुछु है ना खावे-पीबे को। भोत परेशानी है… अब जोन सरकार आए कम से कम हम गरीब आदमन के लाने कछु तो व्यवस्था करे। हम ओरे दवाई के लाने खूब दूर से आत हैं, कम से कम कुछु काम तो होवे हमाए….।
हमीदिया: मरीजों की बढ़ रही संख्या, सुविधाओं पर ध्यान नहीं…
रात 1.45 बजे तेज ठंड के बावजूद हमीदिया अस्पताल में मरीज गलियारे में लेटे हुए थे। एक महिला अपने बेटे के साथ सड़क किनारे बैठी थी।
उसने बताया कि बेटे निलेश के पैर की नस खिंच गई थी, उससे चलते नहीं बन रहा। यहां रात आठ बजे आए थे। 12 बजे डॉक्टर आए, पर उन्होंने बेटे को देखने से मना कर दिया। बोले- सुबह आना बड़े साहब इलाज करेंगे। मैंने विनती की तो नाराज होकर भगा दिया।
फिर सुबकते हुए महिला बोली …साहब गरीबों की कहीं भी सुनवाई नहीं होती है। इस बार जो भी सरकार आए कम से कम अस्पतालों की व्यवस्था तो सुधारे। वोट लेने के बाद कोई सुनने को तैयार नहीं है।
इसी तरह बैरसिया से आए बुजुर्ग रामसिंह पटेल ने बताया कि उन्हें तेज बुखार है, इसके बावजूद पुरानी ओपीडी के बाहर एक छोटा सा कंबल ओढऩे को दिया गया है। इलाज की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। बैरसिया में नेताजी ने कहा भोपाल चले जाओ, अ’छा इलाज मिलेगा। यहां भगवान ही मालिक है।