धीरे-धीरे काम की रफ्तार भी तेज हो रही है। कुछ शाखाओं में 50 फीसदी तक काम पूरा हो गया है, उनमें किसी प्रकरण या केस की जानकारी के लिए अफसर को अब बाबुओं पर कम निर्भर रहना पड़ता है। अगर पूरी तरह डिजिटलाइजेशन हो गया तो यहां काम के लिए भटक रहे लोगों को ज्यादा परेशान नहीं होना होगा। केवल कलक्टर कार्यालय में ही करीब 800 से 1000 नई फाइलें हर माह बनती हैं।
कलेक्टोरेट में वर्षों पुराने रिकॉर्ड में नवाब काल में बनी एतिहासिक इमारतों से लेकर राजस्व सीमा के अंदर के खसरे, नक्शे, भू अर्जन, रेवेन्यू रिकॉर्ड, पुराने केस, जमीनों के अधिग्रहण से संबंधित दस्तावेज, सिंधी विस्थापन, तालाब विस्तार, शिफ्टिंग, नए निर्माण, किस विभाग को कहां जमीन दी गई। प्रशासन की तरफ से दी गईं लीज व अन्य सरकारी रिकॉर्ड को डिजिटलाइज किया जा चुका है। इनमें 30 साल पहले पेट्रोल पंप से लिए गए डीजल के सैम्पल की बोतलें तक के रिकॉर्ड को डिजिटलाइज किया है।
कलेक्टोरेट की छत पर रखा है बचा रिकॉर्ड-
विभागों में वर्षों से हो रहे काम का एक-एक रिकॉर्ड संभाल कर रखा गया है। चाहे वो शस्त्र शाखा हो, कलक्टर कोर्ट हो या फिर राजस्व से जुड़े मामले। इन रिकॉर्ड की इतनी अधिक संख्या हो गई कि उसे नीचे रखना मुश्किल हो गया। कलेक्टोरेट की छत पर टीन डालकर बस्तों में नंबरिंग कर रिकॉर्ड रखा गया है। कुछ महत्वपूर्ण रिकॉर्ड छत पर बने कमरे में रखा है। जिसमें कर्मचारी तैनात रहते हैं। इसमें से भी काफी रिकॉर्ड डजिटलाइज हो गया है।