भोपाल। उत्तरप्रदेश के रायबरेली में NTPC के प्लांट में जिस प्रकार बॉयलर फटा उसने भोपाल गैस त्रासदी की याद दिला दी। नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) के इस प्लांट में भुदवार को एक धमाके में 26 लोगों की जान चले गए और 200 से ज्यादा घायल हो गए। यह सभी प्लांट के ही कर्मचारी थी। इसके अलावा इतने भीषण हादसे को देखते ही ऊंचाहार क्षेत्र के लोगों में भी भगदड़ की स्थिति बन गई। वे काफी दूर तक दौड़ते चले गए। इस दौरान भी भगदड़ में कई लोगों के घायल होने की सूचना है।
रायबरेली के ऊंचाहार क्षेत्र में है एनटीपीसी का यह प्लांट। यह भीषण इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट है, जिसने भोपाल गैस कांड की याद ताजा कर दी। भोपाल गैस कांड को 32 साल हो रहे हैं। 2 दिसंबर 1984 की रात को यह भीषण त्रासदी हुई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। उस समय भी हादसे के बाद पूरे शहर में भगदड़ मच गई थी। लोग शहर से ही दूर भाग जाना चाहते थे। यह आज भी भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से दुनिया भर में ख्यात है।
हमेशा याद आता है भोपाल का गैस कांड
जब जब भी औद्योगिकी हादसे होते हैं या उनकी सुरक्षा की बातें होती हैं तो दुनिया की भीषण त्रासदी में से एक भोपाल का गैस कांड का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल शहर के बीचों बीच है यह यूनियन कार्बाइड। इसे यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड पेस्टीसाइड प्लांट में गैस का रिसाव हुआ था। बताया जाता है कि सिर्फ गैस लीक होने से ही शहर में हजारों लोग मारे गए थे। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 3700 की मौत हुई जबकि गैर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो वे 16 हजार से अधिक मौत होना बताते हैं। जबकि 5 लाख से ज्यादा लोग मिथाइल आसोसाइनेट गैस व अन्य कैमिकल के संपर्क में आ गए थे। कई लोगों का इलाज तो आज भी चल रहा है। भोपाल में गैस पीड़ितों के लिए विशेष अस्पताल बनाए गए। उन्हें मुआवजा बांटा गया। कई अस्पतालों में गैस पीड़ितों के लिए मुफ्त इलाज की सुविधाएं दी गई हैं।
लाशें दफनाने के लिए नहीं बची थी लाशें
उस दौरान कब्रस्तान में लाशों को दफनाने की जगह नहीं बची थी। लाशों को जलाने के लिए लकड़ियां नहीं बची थी। उस दौर के चश्मदीद लोग बताते हैं कि कई लाशों को तो ट्रकों में लकड़ियों की तरह भरकर नदियों में बहा दिया गया था।
क्या होता है बॉयलर
एक बड़े कमरे के आकार का बंद पात्र होता है, जिसमें पानी या अन्य गरम द्रव्य भरा होता है। और गरम करने से उसमें भाप बनती रहती है। कई उपक्रमों किसी वस्तु को गर्म करने के उपयोग में लाया जाता है। इसे ऐसा बनाया जाता है कि गर्म कने के दौरान कम से कम उष्मा नष्ट हो और वाष्प का दाब भी सहन कर पाए। इसकी रीट एनर्जी से इलेक्ट्रिक एनर्जी भी बनाई जाती है। अधिकतर स्थानों पर बिजली पैदा करने के लिए जो टर्बाइन घूमती है उसमें भाप यानी स्टीम से ही घूमती है। इसमें पानी उबलता रहता है और स्टीम बनती रहती है। इस प्रक्रिया से एक इलेक्ट्रिक जनरेटर चलता है।