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खटाई में पड़ गई सीएम बुक बैंक योजना

पूर्व पीसीबी डायरेक्टरहरभजन शिवहर ने की थी पहल

भोपालFeb 14, 2019 / 09:22 am

दिनेश भदौरिया

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खटाई में पड़ गई सीएम बुक बैंक योजना

भोपाल. किताबों की छपाई के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपए और लाखों पेड़ कटने से बचाने के लिए मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तत्कालीन डायरेक्टर हरभजन शिवहर ने सीएम बुक बैंक योजना शुरू करवाई थी। इस योजना के लागू होने से एक ओर तो पर्यावरण और शासकीय खर्च का नुकसान बचता, दूसरी ओर अभिभावकों का खर्च भी पढ़ाई पर कम हो जाता।
योजना लागू होने के बाद भी अफसर इसे टालते रहे और अब यह योजना ही खटाई में पड़ गई है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में सीएम बुक बैंक योजना लागू कराने के लिए पीसीबी के पूर्व डायरेक्टर हरभजन शिवहरे ने प्रयास शुरू किए थे, जिसे शासन ने महत्वपूर्ण मानते हुए लागू कराने का फैसला लिया था।
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इस संबंध में प्रमुख सचिव पर्यावरण विभाग ने सभी कलेक्टरों एवं संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखा था। इस योजना को लागू कराने के लिए तत्कालीन आयुक्त, लोक शिक्षण संचालनालय ने 02 सितंबर 2017 को यह योजना आगामी सत्र से सभी स्कूलों में लागू कराने का निर्देश दिया था। इस योजना को लागू कराने 14 मार्च 2018 को जिला शिक्षा अधिकारी, अशोक नगर और 05 अप्रेल 2018 खंडवा जिला शिक्षा अधिकारी ने भी अधीनस्थों को निर्देश दिए।

तमाम प्रयासों के बाद भी यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है। पिछले वर्ष तो इस योजना के बारे में 18 लाख प्रवेश पत्रों पर भी मुद्रित किया गया था, लेकिन इस वर्ष ऐसा इस योजना के बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं है। इस योजना को लागू कराने के लिए एनजीटी ने भी कहा था। ओपन स्कूल और राज्य शिक्षा केन्द्र ने पिछली बार अंकतालिकाओं ने पर भी इसके बारे में मुद्रित किया था।

 

बोर्ड के प्राथमिक स्कूल : 88644
बोर्ड के मिडिल स्कूल: 53868
बोर्ड से जुड़े निजी प्राइमरी स्कूल: 48000
बोर्ड से जुड़े हायर सेकेंडरी निजी स्कूल: 13000
बोर्ड के शासकीय हाई स्कूल: 16221
बोर्ड के शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल: 8424
कक्षा 9वीं से 12वीं तक के कुल छात्र: 27 लाख
कक्षा एक से 8वीं तक किताबों के कागज, प्रिंटिंग, ट्रांसपोर्टेशन पर कुल खर्च: 400 करोड़ रुपए
कक्षा 9वीं से 12वीं तक सरकारी व निजी स्कूलों के बच्चे किताबें स्वयं खरीदते हैं। कुछ किताबें समय-समय पर लाइब्रेरी से पढऩे को मिलती हैं।
(उक्त आंकड़े मप्र शिक्षा मंडल के हैं। इसके सिवा सीबीएसई और आईसीएसई के स्कूल भी हैं, जो इनमें शामिल नहीं हैं।)


अधिकारियों की सुस्ती और उदासीनता के चलते इतनी महत्वपूर्ण योजना पर अमल नहीं हो पा रहा है। यदि इस योजना पर सख्ती से अमल कराया जाए तो शासन के करोड़ों रुपए और लाखों पेड़ प्रतिवर्ष कटने से बचेंगे ही, साथ ही अभिभावकों की जेब पर वजन कम पड़ेगा।
– हरभजन शिवहरे, पूर्व डायरेक्टर, एमपीपीसीबी

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