यही कारण है कि एक-एक स्कूल वैन में 14 से 20 तक बच्चों केा बेखौफ भरकर ले जाया जा रहा है। इसके साथ रोक के बावजूद एलपीजी गैस से संचालित वैन भी स्कूलों के बच्चों को लाने-ले जाने का काम कर रही हैं। शहर में अभी धड़ल्ले से चार हजार से ज्यादा स्कूल वैन दौड़ रही हैं। इनमें से 60 फीसदी वैन के पास परमिट तक नहीं है, यह कॉमर्शियल वाहन के तौर पर स्कूलों में चल रही हैं।
शहर में 95 प्रतिशत स्कूल वैनों में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा है। गौरतलब है कि पंजाब में हुए हादसे में यह भी खुलासा हुआ है कि हादसे के दो दिन पहले ही स्कूल संचालक ने यह वैन कबाड़ी बाजार से ली थी। इसे स्कूल वैन के तौर पर रजिस्टर्ड भी नहीं कराया गया था।
भोपाल में भी अधिकांश स्कूल वैन प्राइवेट ही चल रही हैं उन्हें आरटीओ में स्कूल वैन के तौर पर रजिस्टर्ड नहीं कराया गया है। क्योंकि रजिस्ट्रेशन तभी हो सकता है जब वे मापदंड पूरे करें। यह वैन मापदंडों के अनुरूप नहीं होने के कारण रजिस्ट्रेशन भी नहीं कराया जाता है।
स्कूली वाहन के लिए यह है गाइडलाइन -स्कूली वाहन का रंग पीला होना चाहिए। -वैन में ड्राइवर सहित 8 से ज्यादा बच्चे नहीं बैठेंगे। -स्कूल वैन एलपीजी से चलने वाली नहीं होगी।
– सभी वैन में फस्र्ट एड बॉक्स व अग्निशामक यंत्र लगे हों।
-स्कूल का नाम व फोन नंबर लिखा होना चाहिए।
– ड्राइवर-स्टाफ यूनिफॉर्म में हो।