आरक्षण रोटेशन प्रणाली का नहीं पालन
आयोग ने कार्यवाही के लिए सभी कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारियों को आदेश दे दिए हैं। अन्य सीटों पर चुनाव कराने के संबंध में निर्णय बाद में लिया जाएगा। इधर, सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी। उधर, याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा कोर्ट में पेश हुए, जबकि मप्र राज्य निर्वाचन आयोग का पक्ष एडवोकेट सिद्धार्थ सेठ और कार्तिक सेठ ने रखा। याची ने दलील दी कि मप्र में आरक्षण रोटेशन प्रणाली का पालन नहीं हुआ, जो कि संविधान की धारा 243 (सी) का उल्लंघन है। ग्रामीण-शहरी चुनाव में अंतर मत कीजिए।
चुनाव रद्द किया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान मप्र राज्य निर्वाचन आयोग को कहा कि ओबीसी आरक्षण के आधार पर पंचायत चुनाव नहीं कराए जाएं। ओबीसी सीटों को नए सिरे से अधिसूचित किया जाए। जस्टिस एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार की बेंच ने पाया कि ओबीसी आरक्षण का नोटिफिकेशन सर्वोच्च अदालत के पूर्व में दिए गए विकास किशनराव गवली वर्सेस महाराष्ट्र राज्य के फैसले के खिलाफ था। कोर्ट ने यह भी कहा है कि कानून के खिलाफ जाकर कोई भी काम किया गया तो चुनाव रद्द किया जा सकता है।
‘आग से मत खेलिए’ सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ‘कृपया आग से मत खेलिए। आपको स्थिति को समझना चाहिए। राजनीतिक मजबूरियों के आधार पर फैसले मत कीजिए। क्या हर राज्य का अलग पैटर्न होगा? सिर्फ एक संविधान है और आपको उसका पालन करना होगा। सुप्रीम कोर्ट भी एक ही है। यह चुनाव आयोग का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है। जब ऐसा ही एक आदेश दिया गया था, तब आप भी वहां थे। हम नहीं चाहते कि मध्यप्रदेश में कोई प्रयोग हो। महाराष्ट्र केस के हिसाब से इसे देखा जाना चाहिए।’