बुजुर्गों के अनुसार कभी स्वर्ण रेखा एक नदी हुआ करती थी, पूर्व में कभी एक राजा इसके किनारे से हाथी पर बैठ कर वापस ग्वालियर की ओर आ रहे थे, इस दौरान हाथी पर बंधी लोेहे की जंजीर लगातार जमीन को छू रही थी।
इसके बाद जब राजा अपने महल पहुंचे तो उन्होंने देखा की हाथी पर बंधी जंजीर सोने की हो गई है। जिससे उन्हें नदी के किनारे पारस पत्थर होने की बात का पता चला। इसके बाद उस पारस पत्थर को ढ़ूंढ़ने की तमाम कोशिशें की गईं, लेकिन वह नहीं मिला। और तब ही से इस नाले या नदी का नाम स्वर्णरेखा पड़ गया।
वहीं इसके अलावा मध्यप्रदेश के ही राजधानी के पास मौजूद पारस पत्थर के बारे में कहा जाता है कि इसकी सुरक्षा स्वयं जिन्न करते हैं।
पौराणिक कहानियों की मानें तो पारस पत्थर वो चमत्कारी पत्थर होता है, जिससे किसी भी लोहे की चीज़ को छुआ जाए तो वो सोने की हो जाती है। माना जाता है कि भोपाल से करीब 50 किलोमीटर दूर एक ऐसा किला है, जहां के लिए कि वहां पारस पत्थर मौजूद है।
सिर्फ इतना ही नहीं, ये बात भी इलाके में काफी मशहूर है कि इस कीमती पत्थर की रखवाली कोई और नहीं बल्कि जिन्न करते हैं। इस किले का नाम है रायसेन किला…
दरअसल 1200 ईस्वी में निर्मित यह किला रायसेन, मध्य प्रदेश का एक प्रमुख आकर्षण है। पहाड़ी की चोटी पर इस किले के निर्माण के बाद रायसेन को इसकी पहचान बलुआ पत्थर से बना हुआ यह किला प्राचीन वास्तुकला और गुणवत्ता का एक अद्भुत प्रमाण है जो इतनी शताब्दियां बीत जाने पर भी शान से खड़ा हुआ है।
माना जाता है कि इसी किले में दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी है। इस किले पर शेरशाह सूरी ने भी शासन किया था। कहा जाता है यहां के राजा राजसेन के पास पारस पत्थर था, जिसे किसी भी चीज को छुलाभर देने से वह सोना (GOLD) की हो जाती थी।
कहा जाता है कि इसी पारस पत्थर के लिए कई युद्ध भी हुए, जब यहां के राजा राजसेन हार गए तो उन्होंने पारस पत्थर को एक तालाब में फेंक दिया, जो किले के अंदर ही है।
जिन्न करते है रखवाली!
किंदवंतियों के अनुसार पारस पत्थर के लिए युद्ध में राजा की मौत हो गई पर मरने से पहले भी उन्होंने यह नहीं बताया कि पारस पत्थर कहां रखा है। इसके बाद यह किला वीरान हो गया और तरह-तरह की बातें होने लगीं।
वहीं पारस पत्थर के अब भी इसी किले में मौजूद होने की चर्चाएं क्षेत्र में आम हैं और इसकी रखवाली जिन्न द्वारा किए जाने की बात भी कही जाती है। यहां तक की लोगों का कहना है कि जो लोग पारस पत्थर की तलाश में किले में गए उनकी मानसिक हालत खराब हो गई।
रात में होती है अभी भी खुदाई
कहा जाता है कि किले के खजाने तक का आज तक पता नहीं लग पाया है। इसकी तलाश में आज भी किले में रात में गुनियां (एक तरह से तांत्रिक) की मदद से खुदाई होती है।
दिन में जो लोग यहां घूमने आते हैं, उन्हें कई जगह तंत्र क्रिया और खोदे गए बड़े-बड़े गड्ढ़े भी दिखाई देते हैं। बहरहाल, पारस के पत्थर और जिन्न को लेकर अब तक कोई ऐसा सबूत हाथ नहीं लगा है कि पुरातत्व विभाग इसपर कोई कदम उठाए।
इसे अलावा मध्यप्रदेश के ही पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है,कहा जाता है कि वहां से 70 किलोमीटर दूर दनवारा गांव के एक कुएं में रात को रोशनी दिखाई देती है। लोगों का मानना है कि कुएं में पारस मणि है। पारस मणि की खासियत ये है कि इसके एक स्पर्श से लोहे की कोई भी वास्तु सोने में तब्दील हो जाती है।
यहां के कुछ लोगों का मानना है कि यह मणि आज भी इस कुएं में मौजूद है, जिसकी वजह से रात में यहां रौशनी दिखाई देती है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इसे देखने का दावा करते हैं।
इसके अलावा राजगौड़ वंश की समृद्धि, शक्ति और वैभव का प्रतीक रहा नरसिंहपुर का चौगान या चौरागढ़ के किला में भी एक पारस पत्थर वाला तालाब है।
जिसके बारे में कहा जाता है कि किला के अंदर बने इस तालाब में एक पारस पत्थर है जिसके संपर्क में आने पर लोहा सोना बन जाता है। अंग्रेजों ने इसकी तलाश में एक हाथी को लोहे की जंजीर बांध कर तालाब में उतारा था जिसकी दो कड़ी सोने की हो गई थीं पर पारस पत्थर हाथ नहीं लगा था।ऐसे समझें पारसमणि को…
इस पत्थर का जिक्र पौराणिक ग्रंथों और लोककथाओं में मिलता है। पारस के संबंध में हजारों किस्से-कहानियां समाज में प्रचलित हैं। कई लोग यह दावा भी करते हैं कि हमने पारस पत्थर देखा है। पारस एक प्रकार का सफेद चमकता हुआ पत्थर होता है। इसी चमक के कारण इसे पारस मणि भी कहते हैं।