बिहार के डॉ. मुकेश कुमार ने अपने शोधपत्र के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक ढांचे के नवनिर्माण में सरदार पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया। डॉ. अन्नपूर्णा शाह, राजकोट ने सरदार पटेल पर गांधी के विशद प्रभाव का वर्णन करते हुए उनकी कार्यशैली का वर्णन किया। कोलकाता की मार्टिना चक्रवर्ती ने भारतीय मुस्लिमों और सरदार पटेल के अंर्तसंबंधों का ऐतिहासिक विश्लेषण किया। सत्र की अध्यक्षता डॉ. मुन्नी पारीक ने की।
दूसरे सत्र में डॉ. संजय स्वर्णकार, ग्वालियर ने भारत-चीन संबंधों पर सरदार पटेल का नेहरू से मतभेद पर प्रकाश डालते हुए चीन के संबंध में सरदार पटेल की आशंका को सत्य बताया। डॉ. अनिल पाण्डेय, छत्तीसगढ़ ने देशी राज्यों के विलय से संबंधित अंदरूनी राजनीति और पटेल की भूमिका का वर्णन किया। डॉ. संगीता मेश्राम, नागपुर ने 1923 में कांग्रेस द्वारा किए झण्डा सत्याग्रह में सरदार पटेल के योगदान का वर्णन किया। वहीं, डॉ. प्रफुल्ला रावल, राजकोट ने 1939 में भावनगर की नगीना मस्जिद के सामने सरदार पटेल के जुलूस पर हुए प्राणघातक हमले का वर्णन करते हुए बताया कि इस आक्रमण का मुख्य निशाना सरदार पटेल ही थे परंतु वह बाल-बाल बच गये। इस सत्र की अध्यक्षता बिहार के डॉ. मुकेश कुमार ने की।
वैकल्पिक विचारों को लाना होगा आगे
अंतिम सत्र में डॉ. परवेज नाजिर, अलीगढ़ ने कहा कि आम जनता की मदद के लिए कांग्रेस और सरदार पटेल आगे आते रहे। पूना के डॉ. लहू काचरू गायकवाड़ ने तमाम सारे मराठी साक्ष्यों की मदद से सरदार पटेल के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. गिरीश चन्द्र पांडेय ने की। समापन सत्र में संस्कृति विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में वैकल्पिक विचारों और अवधारणाओं को भी आमजन के सामने लाना आवश्यक है।