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भोपाल

ट्रिपल तलाक: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव रहमानी, जानिये यहां

सुप्रीम कोर्ट में बात रखने के लिए आज भोपाल में चर्चा करेंगे। देश भर से आए उलेमा और जानकारों से किया जाएगा राय मशविरा।

भोपालSep 10, 2017 / 10:18 am

दीपेश तिवारी

Personal Law Board secretary Rahmani
भोपाल। सुप्रीम कोर्ट का फैसला कामयाब और खुशगवार है। हमें इसका इस्तकबाल करना चाहिए। फैसले का बड़ा हिस्सा शरीयत के अनुसार ही है। इस फैसले से पर्सनल लॉ मजबूत हुआ है, लेकिन इसका एक हिस्सा शरीयत से टकरा रहा है।
इसका कानून के जरिए हल निकाला जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में बात रखने के लिए हम रविवार को भोपाल में चर्चा करेंगे। ये कहना है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सचिव मौलाना वली रहमानी का। वे रविवार को होने जा रही बोर्ड की वर्किंग कमिटी की मीटिंग में शामिल होने भोपाल आए हैं।
रहमानी ने कहा, तीन तलाक पर कोर्ट के फैसले के दूसरे हिस्से में बताया गया कि तीन तलाक नाफिज नहीं होगा। समाज में ये कैसे नाफिज होगा, इस पर कोर्ट और सरकार को सोचना है। यहां ये शरीयत से टकरा रहा है।
इस मामले में अब कानूनी तरीके से हल निकाला जाना है। इसी पर देश भर से आए उलेमा और जानकारों से राय मशविरा किया जाएगा। उन्होंने बताया, इस फैसले से संविधान का आर्टिकल 25 भी प्रभावित हो रहा है। रविवार की मीटिंग के बाद तय होगा क्या क़दम उठाये जाएंगे।
यह है मामला:
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त करते हुए अपनी व्यवस्था में इसे अ-संवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है।
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने 365 पेज के फैसले में कहा, ‘3:2 के बहुमत से दर्ज की गई अलग-अलग राय के मद्देनजर‘तलाक-ए-बिद्दत’’ तीन तलाक को निरस्त किया जाता है। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने तीन तलाक की इस प्रथा पर छह महीने की रोक लगाने की हिमायत करते हुए सरकार से कहा कि वह इस संबंध में कानून बनाए जबकि न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति उदय यू ललित ने इस प्रथा को संविधान का उल्लंघन करने वाला करार दिया। 
बहुमत के फैसले में कहा गया कि तीन तलाक सहित कोई भी प्रथा जो कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है, अ-स्वीकार्य है।

तीन न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि तीन तलाक के माध्यम से विवाह विच्छेद करने की प्रथा मनमानी है और इससे संविधान का उल्लंघन होता हैं, इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए।
दो जजों की राय थी अलग
प्रधान न्यायाधीश खेहर और न्यायमूर्ति नजीर ने अल्पमत के निर्णय में तीन तलाक की प्रथा को छह महीने स्थगित रखने की हिमायत करते हुए राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने मतभेद परे रखते हुए केन्द्र को इस संबंध में कानून बनाने में सहयोग करें। अल्पमत के निर्णय में यह भी कहा गया कि यदि केन्द्र छह महीने के भीतर कानून नहीं बनाता है तो तीन तलाक पर यह अंतरिम रोक जारी रहेगी। प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति नजीर ने उम्मीद जताई कि केन्द्र का कानून मुस्लिम संगठनों की चिंता और शरिया कानून को ध्यान में रखेगा।
इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ में सभी विभिन्न धार्मिक समुदायों के न्यायाधीशों ने तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देने वाली पांच मुस्लिम महिलाओं की याचिका सहित सात याचिकाओं पर सुनवाई की थी।

इससे पूर्व 11 से 18 मई तक रोजाना सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए मंगलवार का दिन मुकर्रर किया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय में शादी तोड़ने के लिए यह सबसे खराब तरीका है। ये गैर-ज़रूरी है, कोर्ट ने सवाल किया कि क्या जो धर्म के मुताबिक ही घिनौना है वह कानून के तहत वैध ठहराया जा सकता है? सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि कैसे कोई पापी प्रथा आस्था का विषय हो सकती है।
शायरा बानो की याचिका
दरअ-सल, शायरा बानो ने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी। इस पर शायरा का तर्क था कि तीन तलाक न तो इस्लाम का हिस्सा है और न ही आस्था। 
उन्होंने कहा कि उनकी आस्था ये है कि तीन तलाक मेरे और ईश्वर के बीच में पाप है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कहता है कि ये बु-रा है, पाप है और अवांछनीय है।
जानकारी के अनुसार मार्च, 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को अ-संवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और अ-समानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है।

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