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भोपाल

‘औरतें हैं हम, खाना नहीं हैं, मेज पर धरा हुआ, छीलो, हड्डियां अलग करो, भर लो अपना पेट…

एक मंच पर आईं विश्व की आठ भाषाओं की कविताएं, टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य और कला महोत्सव विश्वरंग के अंतिम दिन रविवार को वनमाली सभागार में विश्व कविता सत्र का आयोजन किया गया।

भोपालNov 11, 2019 / 11:05 am

योगेंद्र Sen

'औरतें हैं हम, खाना नहीं हैं, मेज पर धरा हुआ, छीलो, हड्डियां अलग करो, भर लो अपना पेट...

‘औरतें हैं हम, खाना नहीं हैं, मेज पर धरा हुआ, छीलो, हड्डियां अलग करो, भर लो अपना पेट…


भोपाल. टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य और कला महोत्सव विश्वरंग के अंतिम दिन रविवार को वनमाली सभागार में विश्व कविता सत्र का आयोजन किया गया। इसमें तिब्बत के तेंजिन त्सुंदु, अफगानिस्तान के नजीब बरवर, बांग्लादेश के ओबायद आकाश, श्रीलंका के चेरन रुद्रमूर्ति, फिलिपिंस के मारा लेनोत, कोलंबिया के एल्वेरो मारीन, क्रिमिया के ईगर सीद और हिन्दी कवि इब्बार रब्बी की कविताओं का पाठ हुआ। कविताएं मातृ भाषाओं में थीं, जिसे अनुवादक ने श्रोताओं के लिए हिंदी में सुनाई। फिलीपींस की मारा लनोत ने ‘औरतें हैं हमÓ कविता के जरिए औरतों की हालत बयां की।
उन्होंन कहा- ‘औरतें हैं हम, खाना नहीं हैं, मेज पर धरा हुआ, छीलो, हड्डियां अलग करो, भर लो अपना पेट, कूड़ा नहीं हैं कूड़ेदान में समा जाने के लिए।।

अध्यक्षता ऋतुराज और संचालन प्रो. राजेन्द्र सक्सेना ने किया। इस मौके पर ओबायद के नए संकलन ‘फाउस एसेससिनÓ का लोकार्पण हुआ।
तेजिन त्सुंदु, (तिब्बत): ‘दहशतगर्द’
मैं एक दहशतगर्द हूं, मारना मेरा शगल है
मेरे सींग हैं, दो जहरीले दांत और ड्रैगनफ्लाई सी पूंछ, अपने घर से खदेड़ा गया, डर से छिपा था
प्राण बचाए, जिसके मुंह पर बंद हैं सब दरवाजे…
ईगर सीद (क्रिमिया, रूस): ‘झुलसी हुई पृथ्वी की रणनीति’
झुलसी हुई पृथ्वी की रणनीति ऐसी है,
कि वह कर रही है मेरे दिल के टुकड़े-टुकड़े, जबकि उसकी अपनी परंपराएं हैं, अपना है रेगिस्तान, बुजुर्ग बैठे हुए हैं एक घर बनाकर और बाते रहे हैं, यह बहुत पुरानी बात है, पचासों से साल पुरानी…
ओबायद आकाश (बांग्लादेश): ‘वंश परंपरा’
मछली बाजार में जिस मछली का मोलभाव पर,
बाताबाती हाथापाई में बदल रही थी
उसके बाजू के डाले से एक कटे हुए कतले का सिर, उछल कर मेरे थैले के अंदर घुस आया…
एल्वेरो मारीन (कोलंबिया): ‘कामना’
मैं कह सकता हूं, रूपहला आकाश या नीला चांद
पर ये मेरा स्वर नहीं है, और अगर मैं किसी तारे का चित्र बनाता हूं, तो वह केवल अपनी परछाई को, दूर भगाने के लिए होगा…
चेरन रुद्रमूर्ति (श्रीलंका): ‘मिट्टी’
जो निकल गया एक लंबी यात्रा पर, उसके बच्चे को इसकी खबर नहीं, कोई दिशा पकड़ ली, कोई भी सड़क, धुंए से भरी हुई दूर तक
समुद्र यदि जुदा होकर यह राज खोल दे
तो आंसुओं से भर जाएगा यह रास्ता…
लेबो माशिले (दक्षिण अफ्रीका): ‘आह्वान’
हर उस प्रथम व्यक्ति के, कंकाल के भीतर गड़ी
स्मृतियों का आव्हान करते हैं, कि वे आएं और धरती की सतह पर चहलकदमी करें, इस सभ्यता को बीज की तरह, इस ग्रह को पालें, उनके झूलों में, उनके घोंसलें बनाएं…

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