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भोपाल

पांच साल, 650 सवाल, एक ही जवाब अभी जानकारी एकत्रित की जा रही है

नई विधानसभा के गठन के साथ खत्म हो जाएंगे जनता से जुड़े सैकड़ों सवाल

भोपालDec 09, 2018 / 10:47 pm

रविकांत दीक्षित

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public related Questions to the ignore in Assembly

डॉ. दीपेश अवस्थी @ भोपाल. प्रदेश के निजी अस्पताल कितनी फीस वसूल सकते हैं? भोपाल, इंदौर में कितने आइवीएफ क्लीनिक हैं। भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में उपकरण और दवा खरीदी घोटाले के लिए कौन जिम्मेदार हैं? आपसे जुड़े ऐसे करीब 650 सवाल विधायकों ने लगाए थे, लेकिन अफसरों की मनमानी और सरकार के उदासीन रवैये के चलते इनका जवाब सदन में नहीं आ सका। अब नई सरकार के बनते ही ये सारे सवाल मर जाएंगे। इनका जवाब जानने के लिए नई सरकार के विधायकों को विधानसभा में फिर से सवाल लगाना होंगे। इन सबके बावजूद इसकी कोई गारंटी नहीं कि जवाब मिल ही जाएं। यदि अफसरों की मनमानी ऐसे ही चली तो इनका जवाब अगले पांच साल तक फिर लटक सकते हैं।

बचाव का ऐसा तरीका

सरकार की ओर से साधारण सवालों के जबाव आ जाते हैं, लेकिन जिन सवालों में सरकार को किरकिरी होने का डर रहता है तो उसके लिए यही लिखित जवाब दिया जाता है कि जानकारी एकत्रित की जा रही है। कई सवालों के बारे में लगातार पांच साल तक यही जवाब मिलता रहा। इसमें किसानों की आय, छात्रवृत्ति घोटाला, व्यापमं के माध्यम से हुई नियुक्तियां, आइएएस, आइपीएस अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त कार्रवाई आदि के सवाल प्रमुख हैं।

यह है स्थिति

निजी अस्पतालों की फीस और पैरामेडिकल स्टॉप की जानकारी से जुड़े सवाल दो साल से लंबित हैं। इस बीच विधानसभा सचिवालय ने तीन बार विभाग को लिखा, लेकिन हर बार अधूरा ही जवाब आया। मालूम हो स्वास्थ्य विभाग के 54 सवाल लंबित हैं। व्यापमं से जुड़े सवालों की भी यही स्थिति है। लंबित सवालों के जवाबों के लिए विधानसभा ने मुख्य सचिव को पत्र लिखा। इसके लिखित जवाब में मुख्य सचिव ने कहा कि लंबित मामलों की समीक्षा कर समय पर जवाब देने के निर्देश विभागों को दिए गए हैं।

नियम क्या कहता है…

विधानसभा सत्र की अधिसूचना जारी होने के साथ ही विधायक लिखित सवाल पूछ सकते हैं। विधानसभा सचिवालय इन सवालों को प्रदेश सरकार के संबंधित विभाग को भेजती है। संबंधित विभाग के मंत्री सदन में इनका जवाब देते हैं। यदि किसी कारण सरकार की ओर से चालू सत्र में जवाब नहीं आता है तो उसे अगले सत्र में जवाब देना अनिवार्य है, लेकिन इसका पालन नहीं होता। निर्धारित समय पर जवाब न आने पर यह मामले सदन की प्रश्न एवं संदर्भ समिति को स्थानांतरित हो जाते हैं, समिति विभागों से जवाब तलब कर देरी के लिए संबंधित की जिम्मेदारी भी तय करती है।

पत्र लिखने तक सीमित विधानसभा

विधानसभा को यह अधिकार भी है कि वह संबंधित विभाग के जिम्मेदार अफसर पर एक्शन लेने के लिए सरकार को निर्देश दे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लंबित सवालों के मामले में विधानसभा ने मुख्य सचिव को पत्र लिखा। मुख्य सचिव ने लिखित जवाब दिया कि विभागों की समीक्षा कर समय पर जवाब देने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि इस मामले में विधानसभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह का कहना है कि सचिवालय का प्रयास रहता है कि विधायकों के सवालों के जवाब समय पर मिल जाएं, इसके लिए समय-समय पर स्पीकर भी विभाग को निर्देश देते हैं। देरी से जवाब देने के मामले में अफसरों की जिम्मेदारी तय करने के लिए सचिवालय लिखता है। लंबित सवालों को लेकर मुख्य सचिव को भी पत्र लिखा जा चुका है।

कैसे-कैसे सवालों के जवाब अटके

– वर्ष 2013-14 से 2017-18 तक प्रदेश की कुल कृषि आय कितनी थी। किसानों की आय में कितना इजाफा हुआ।

– राज्य में कितने किसानों का फसल बीमा कराया गया। योजना के तहत कितने किसानों की कितनी-कितनी प्रीमियम राशि बैंक में जमा कराई गई।
– कितने किसानों को विदेश प्रशिक्षण के लिए भेजा गया, उनका किस आधार पर चयन किया गया, लेकिन अधूरा जवाब आया।

– एक अप्रेल 2014 से लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने कितने आइएएस और आइपीएस अफसरों के यहां कार्रवाई की। किसके यहां कितनी राशि मिली और एक्शन क्या हुआ।
– प्रदेश सरकार की विभिन्न राज्यों में कहां कितनी सम्पत्ति है, उसकी देखरेख का जिम्मा किसके पास है, पांच वर्षों में क्या आमदनी हुई। यहां हुए अवैध कब्जे को हटाने के लिए सरकार क्या प्रयास कर रही है। कितनों के खिलाफ एफआइआर हुई।
– भोपाल और इंदौर में हुई कितनी रजिस्ट्रियों में फर्जीवाड़ा हुआ। कितने स्थानों में एक ही प्लॉट पर एक से अधिक लोगों की रजिस्ट्री कर दी गई। वर्ष 2016 और 2017 में कितने लोगों पर प्रकरण दर्ज हुए।
– पिछले पांच साल में व्यापमं ने परीक्षा शुल्क के रूप में कितनी राशि वसूली, 10 वर्ष की परीक्षा में कितने अभ्यार्थी शामिल हुए, परीक्षा के आयोजन पर कितना खर्च हुआ। कितने पास हुए।
– जनवरी 2009 से किस-किस संस्था, व्यक्ति, सोसायटी, नवीन मेडिकल कॉलेज खोलने के कब-कब कितनी शासकीय जमीन आवंटित की गई।

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