उज्जैन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पाण्डेय को एेसे समय हटाया गया है जब राजभवन ने यहां नए कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। कुलपति को हटाए जाने के बाद अब इस विश्वविद्यालय का नियंत्रण सीधे तौर पर राज्य सरकार के अधीन हो जाएगा।
वहीं छत्रसाल बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रियव्रत शुक्ल इस्तीफा दे चुके हैं। उनके इस्तीफा दिए जाने के साथ ही राजभवन ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया। इन पर संघ से जुड़े होने के आरोप लगते रहे हैं।
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल, अटल बिहारी बाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय भोपाल और राजीव गांधी प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय भोपाल पर भी सरकार की नजर है। इन सभी कुलपतियों की नियुक्ति भाजपा शासनकाल में हुई थी। आरोप हैं कि ज्यादातर विश्वविद्यालयों के कुलपति संघ विचारधारा से जुड़े हैं।
दिग्विजय काल में भी बढ़ा था टकराव –
राजभवन और सरकार में टकराव दिग्विजय शासनकाल में अधिक था। वर्ष 1998 से 2003 तक भाई महावीर राज्यपाल थे और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री। टकराव एेसा था कि दिग्विजय सरकार ने कुलपतियों की नियुक्ति के अधिकारी राजभवन से लेने के लिए कानून बनाने का प्रयास किया लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली।
हालांकि कुलसचिवों की पदस्थापना सरकार अपने पास लेने में सफल हो गई। इसके पहले कुलपति और कुलसचिवों की नियुक्तियों के अधिकार राजभवन के पास थे। अब सिर्फ कुलपतियों के अधिकार ही राजभवन के पास हैं।