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अपनों से दूर हैं ये बच्चे तलाश रहे इस बंधन में सहारा

रा खी जितने वक्त में बहन की अंगुलियों से निकलकर भाई की कलाई तक का सफर तय करती है, वही एक पल उसमें जान डाल देता है। इस अनमोल बंधन को कई ऐसे बच्चे भी तैयार कर रहे हैं जिनका खुद का कोई नहीं। रक्षा सूत्र में ये अपने लिए सहारा तलाश रहे हैं। भाई-बहनों के बीच प्यार को बढ़ाने वाले रक्षाबंधन त्योहार के लिए बाल-बालिका गृह और परवरिश द म्युजियम स्कूल में बच्चे राखी के त्योहार की तैयारी जोर-शोर से कर रहे हैं।

भोपालAug 12, 2018 / 08:26 am

KRISHNAKANT SHUKLA

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अपनों से दूर हैं ये बच्चे तलाश रहे इस बंधन में सहारा

बंधन : बाल निकेतन और आश्रय गृह में राखी का प्रशिक्षण, इको-फ्रेंडली थीम पर राखियां

रा खी जितने वक्त में बहन की अंगुलियों से निकलकर भाई की कलाई तक का सफर तय करती है, वही एक पल उसमें जान डाल देता है। इस अनमोल बंधन को कई ऐसे बच्चे भी तैयार कर रहे हैं जिनका खुद का कोई नहीं। रक्षा सूत्र में ये अपने लिए सहारा तलाश रहे हैं।

भाई-बहनों के बीच प्यार को बढ़ाने वाले रक्षाबंधन त्योहार के लिए बाल-बालिका गृह और परवरिश द म्युजियम स्कूल में बच्चे राखी के त्योहार की तैयारी जोर-शोर से कर रहे हैं। जहां एक तरफ बहनें भाई के लिए सुंदर-सुंदर राखी डिजाइन कर रही हंै, वहीं दूसरी तरफ भाई राखी बनाने में उनकी मदद कर रहे हैं।

लोक उत्थान खुला आश्रय गृह की संचालिका अनीता ने बताया कि आश्रय गृह में रहने वाले बच्चों को स्वयं राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पंद्रह दिवसीय प्रशिक्षण में बच्चों ने करीब 100 से अधिक राखियां डिजाइन की हैं। मोती, रेशम का धागा, रंगीन धागे व डिजाइन वाली बटन से राखियों को बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन के लिए मौजूद नाबालिग बच्चियां और बच्चे राखी बांधते हुए त्योहार सेलिब्रेट करेंगे।

 

हमीदिया रोड स्थित बाल निकेतन की वॉर्डन रेखा तिवारी ने बताया कि गृह में रहने वाली बच्चियों के लिए सावन का महत्व और सावन में मनाए जाने वाले तीज-त्योहार के बारे में बच्चियों को बताया जा रहा है। वहीं बच्चियों को राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बच्चियां इस बार ईको-फ्रेंडली थीम पर राखी डिजाइन कर रही हैं। जिसमें रंग-बिरंगे कागज, न्यूज पेपर आदि से बना रही हैं।

परवरिश द म्यूजियम स्कूल की संचालिका शिबानी घोष ने बताया कि राखी त्योहार आने से करीब एक महीना पहले से स्कूल के बच्चों ने राखी डिजाइन करना शुरू कर दिया है। बच्चों द्वारा बनाई गई सुंदर-सुंदर राखियों को देख आस-पास के रहवासी उन्हें खरीदने भी आ रहे हैं। ईको-फ्रेंडली थीम पर ये बनाई जा रही हैं।

 

 

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बाजार में परम्परागत सोने और चांदी की राखियां भी

रक्षासूत्र के बंधन की चौक सराफा व लखेरा पुरा में कभी सोने-चांदी के तारों से जरीवाली राखियों की अपनी अलग ही पहचान थी। महंगाई के साथ ही इसकी जगह मोती और जरी के तारों से बनने वाली राखियों से पटवा समाज की पहचान बनी। राखियां की थोक दुकानें सावन के पहले से शुरू हो गईं।
डिजाइन और वजन के हिसाब से इनका रेट निर्धारित होता है। लोकल कारीगर इन्हें कम बनाते हैं ज्यादातर दूसरे जगह से आती हैं। सराफा चौक व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष, नरेश अग्रवाल ने बताया कि राखियों की डिमांड के साथ स्पेशल राखी के लिए भी लोग आते हैं।
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