भोपाल। विश्व शांति दिवस के अवसर पर गांधी भवन में नाटक में ‘आदमखोर’ का मंचन किया गया। नाटक का लेखन और निर्देशन अब्दुल्ला हक ने किया है। नाटक के माध्यम से ये संदेश देने की कोशिश की गई कि वल्र्ड वार हो या दो देशों की लड़ाई, आखिर उन सैनिकों की क्या गलती थी। जो इस युद्ध में मारे गए। नाटक में 6 कहानियों के माध्यम से उन तानशाह शासकों की कहानी दिखाई गई। जिन्होंने दुनिया में खूब तबाही मचाई है। जिसमें रशिया, इटली और रूस आदि शामिल हैं। नाटक में राकेश कबीर ने एकल अभिनय किया है।
नाटक की शुरुआत एक ऐसे शख्स से होती है जो किताब पढ़ रहा होता है। अचानक उसे किताबों से अजीब आवाजें आने लगती है। इसके बाद उसे रेडियो पर एक विसिल आने लगती है। नाटक में हिरोशिमा की कहानी भी दिखाई गई। हमले के बाद पोस्टमैन तानागुची ही बचे हुए हैं। वह कहता है कि तुमने लाखों नहीं बल्कि करोड़ों लोगों को मारा है कभी वॉर के जरिए तो कभी परमाणु हमले से।
कहानी आगे बढ़ते हुए जर्मनी के तानाशाह शासक हिटलर की ओर बढ़ती है। वह एक बंकर के बीच बैठा दिखाई देता है। वह कहता है मैं हूं एडोल्फ हिटलर, दुनिया की ऐसी तबाही दिखाउंगा कि कभी किसी ने नहीं देखी होगी। अगले दृश्य में जापान का तोहजो दिखाया गया। जहां करीब तीन हजार लोगों को मरवाया गया था और कहा गया था सम्राट हमारे देश की जनता के लिए जीवित भगवान है सम्राट राष्ट्र से भी पहले आते हैं।
तानाशाहों ने फैलाई नफरत कहानी के अगले दृश्य में ब्रिटने के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को दिखाया गया। वह कहता है कि लोकतंत्र सरकार का सबसे खराब पहलू है। हमारे सैनिक एक हजार साल तक लड़ेंगे। फिर इटली के इटली मुसोलिनी आते हैं वह कहते हैं कि लोग अपनी आंख नाक कान सब बंद कर लें, हम समाजवाद के साथ नहीं जाएंगे नहीं तो कल सोवियत संघ काबिज हो जाएगा। नाटक के अंत में एक फौजी लाशों के ढेरों के बीच से उठकर कहता है कि न मैं उसे जानता था जिसको मैंने मारा और न वह मुझे जानता था।