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भोपाल

MP POLICE : उपेक्षा के चलते सिसक रही ‘निर्भया’ तो थाने में हुई कैद ‘शक्ति’

महिला सुरक्षा: शुरू की गई योजनाएं चंद दिन चलने के बाद तोड़ रहीं दम…

भोपालMay 04, 2019 / 01:21 pm

दीपेश तिवारी

Demo police

MP POLICE : उपेक्षा के चलते सिसक रही ‘निर्भया’ तो थाने में हुई कैद ‘शक्ति’

भोपाल। सदन से लेकर सार्वजनिक मंचों तक महिला सुरक्षा को लेकर दावों को न सिर्फ अपराधी झुठला रहे हैं, बल्कि सरकार, पुलिस भी पीछे नहीं हैं।


पांच साल में महिलाओं की सुरक्षा-जागरुकता से जुड़ी 10 प्रमुख योजनाओं की शुरुआत की गईं, लेकिन चंद दिनों तक कागजी घोड़े दौड़ाने के बाद पुलिस, जिम्मेदार विभागों ने मुहिम पर अल्पविराम लगा दिया। निर्भया फंड, शक्ति स्क्वॉड, मोबाइल एप हो या हेल्पलाइन। यह सब योजनाएं सरकारी उपेक्षा से दम तोड़ चुकी हैं।

यही वजह कि दुष्कर्म, हत्या, छेड़छाड़, आइटी एक्ट संबंधी अपराध बढ़ते जा रहे हैं। वहीं न्याय पाने पीडि़ता उसके परिजनों को थानों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, अपमानित होना पड़ता है। मनुआभान की टेकरी में बुधवार को 8वीं की छात्रा की दुष्कर्म के बाद हुई हत्या पुलिस की सुरक्षा दावों की पोल खुद खोल रही है।

 

फैक्ट फाइल:
– 2017 में 2991 संगीन अपराध।
– 2018 में पिछले साल के मुकाबले 3461 अपराध।
– 2019 में मार्च तक 855 अपराध कायम हुए। जो 2018 के तीन माह के मुकाबले अधिक।
– भोपाल पुलिस में करीब 350 महिला पुलिसकर्मी अलग-अलग थानों में पदस्थ।
– शहर में 12 लाख से अधिक महिलाओं की आबादी।
– 600 से अधिक शहर में शैक्षणिक संस्थान।

महिला सुरक्षा: पांच साल में शुरू की गई योजनाओं की स्थिति…

1. हेल्पलाइन सेल: महिलाओं-छात्राओं की सुरक्षा के लिए सेल गठित होने के साथ हेल्पलाइन-1090 समेत अन्य सेवाएं शुरू की गईं। स्कूल-कॉलेज के बाहर छुट्टी के समय पुलिस पिकेट, पेट्रोलिंग की योजना।
हकीकत: कागजों तक सीमित। न तो सेल में कर्मचारी हैं, न ही बनाए गए नियम-कानून फॉलो हो रहे हैं।
2. शक्ति मैत्री स्क्वाडर: दोपहिया वाहन दिए: काम था स्कूल-कॉलेज, पार्क, पब्लिक प्लेस, मार्केट, मॉल के बाहर संदिग्धों की धरपकड़, चौकसी।
हकीकत: कभी-कभार देखने को मिलेंगे। वाहन का उपयोग घरेलू काम के लिए हो रहा है।
3. शिकायत बॉक्स : छात्राओं की मदद के लिए स्कूल कॉलेज में कंप्लेंट बॉक्स-बैग लगाने की योजना। थाना पुलिस को बॉक्स खोलकर शिकायतों का निस्तारण की जिम्मेदारी दी गई।
हकीकत: अधिकतर संस्थान में बॉक्स तो हैं, लेकिन अब न तो खोला जाता है और न ही उसमें शिकायतों का निस्तारण होता है।
4. महिला हेल्प डेस्क : छोटे-छोटे अपराध पर तत्कालीन मदद के लिए थाने में महिला हेल्प डेस्क बनाने का दावा।
हकीकत: कई थानों में महिला हेल्प डेस्क का प्रिंट चस्पा तो है, लेकिन न तो महिला पुलिस कर्मी हैं और न त्वरित कार्रवाई हो रही।


5. मोबाइल ऐप : त्वरित मदद के लिए मोबाइल सेफ्टी ऐप शुरू किए गए। एमपी ईकॉप, डब्ल्यूसेफ्टी ऐप इसमें प्रमुख था।
हकीकत: प्रचार-प्रसार नहीं होने से ऐप 20 हजार डाउनलोड का आंकड़ा नहीं पूरा कर पाया।
6. निर्भया फंड : दुष्कर्म पीडि़ताओं को आर्थिक मदद के लिए केंद्रीय स्तर पर फंड शुरू हुआ। पीडि़ता के पुनर्वास तक की व्यवस्था का प्रावधान।
हकीकत: शहर में तीन फीसदी दुष्कर्म पीडि़ताओं को ही मदद मिल पाती है। चार साल में 15 फीसदी राशि ही खर्च हो सकी।
7. क्राइसिस सेंटर : पीडि़ताओं को मेडिकल मदद, काउंसलिंग, कानूनी जानकारी, एक ही स्थान पर देने का दावा।
हकीकत: 10 फीसदी पीडि़ताओं को ही पुलिस सेंटर तक भेजती है।

8. सीसीटीवी कैमरे : छात्राओं से दुव्र्यवहार पर अंकुश लगाने सीसीटीवी कैमरे, रात में अंधेरे रास्तों में रोशनी की व्यवस्था।
हकीकत: 30 फीसदी संस्थानों में कैमरे नहीं। मुख्य मार्गों के साथ अन्य रास्तों में लाइट नहीं लगीं।
9. परिवहन : सार्वजनिक परिवहन में सीसीटीवी कैमरे लगाने के साथ महिला यात्रियों को सुरक्षा देने की प्लानिंग।
हकीकत: कुछ बसों को छोड़ अब तक कुछ भी नहीं हुआ। न ही हेल्पलाइन नंबर चस्पा किए गए।
10. वूमन सेफ्टी ऑडिट : समय-समय पर ऐसे स्थानों को चिह्नित कर सुरक्षा व्यवस्था लगाई जाए जिन स्पॉट (खासकर सूनसान जगह-रास्ते) में महिलाओं के साथ अपराध होने की आशंका है।
हकीकत: दो साल पहले 20 ऐसे स्पॉट पुलिस ने चिह्नित किए, उनमें ही चौकसी नहीं। सालों से सेफ्टी ऑडिट नहीं हुई।
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