राज्य में कांग्रेस के प्रमुख कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) द्वारा कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने के लिए बीएसपी को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि बीएसपी BSP जो सीटें मांग रही थी, वहां उनके जीतने के कोई चांस ही नहीं थे। यह बातें उन्होंने
गुरुवार को मीडिया से कही।
कमलनाथ kamalnath ने कहा कि बीएसपी ने सीटों की जो सूची हमें दी, वहां उनके जीतने के कोई चांस नहीं थे और जो सीटें वो जीत सकते थे, वो उनकी सूची में थी ही नहीं। उन्होंने कहा कि हालांकि बीएसपी bsp के निर्णय से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि पार्टी का जमीनी आधार बहुत मजबूत है। उनके अनुसार राज्य की जनता समझदार है और वो जानती है कि किसे चुनना है।
वहीं जानकारों का मानना है कि बसपा के साथ छोड़ने से कांग्रेस congress को मध्यप्रदेश में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि बसपा के साथ रहने व सवर्णों के भाजपा BJP विरोध का सीधा लाभ कांग्रेस को मिल सकता था।
MUST READ : देखते ही देखते बदल गया प्रदेश में सियासी समीकरण, बसपा के इनकार ने कांग्रेस को मुश्किल में डाला! राजनीति के जानकार डीके शर्मा के अनुसार बसपा की ओर से लगातार सामने आ रहे बयान पहले ही ये साफ कर रहे थे कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ी जरूर है। क्योंकि बसपा का जो भी प्रदेश अध्यक्ष होता वह कांग्रेस के साथ गठबंधन broken coalition in MP को लेकर या तो मना कर देता था या कहा देता था कि उपर ही सब होगा, लेकिन अब तक हमारे पास कोई आदेश नहीं आए हैं।
इधर, एक नए गठबंधन के संकेत…
बीएसपी के गठबंधन में टूट के बाद कमलनाथ ने अब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा, ‘मैंने कुछ दिन पहले अखिलेश यादव से बात की थी, हम उनके साथ बातचीत कर रहे हैं। हालांकि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि गठबंधन बनाने और उसे कामयाबी के साथ चलाने के लिए कांग्रेस पार्टी को दरियादिली दिखानी होगी।
अलग रहकर चुनाव लड़ने की घोषणा…
इससे पहले बीएसपी ने बुधवार को मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस से अलग रहकर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। वहीं पूर्व में वो छत्तीसगढ़ लेकर भी ऐसा ही फैसला कर चुकी हैं। कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने की घोषणा करते हुए मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि कांग्रेस को अहंकार हो गया है कि वह अकेले लड़कर चुनाव जीत सकती है। मायावती ने आरोप लगाया कि कांग्रेस भी बीजेपी की तरह ही बीएसपी को खत्म करने की साजिश रच रही है।
दिग्विजय सिंह पर फोड़ा था ठीकरा
उन्होंने गठबंधन नहीं हो पाने के लिए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराया था। मायावती ने कहा था कि मुझे लगता है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कांग्रेस-बीएसपी गठबंधन को लेकर इमानदार हैं, लेकिन कुछ कांग्रेसी नेता ऐसा नहीं चाहते।
मायावती ने इस मौके पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह पर भी निशाना साधा था और दिग्विजय को बीजेपी का एजेंट तक करार दे दिया। बीएसपी चीफ ने कहा था कि दिग्विजय सिंह, (जो कि बीजेपी के एजेंट है) ये बयान दे रहे हैं कि मुझे पर केंद्र की तरफ से कांग्रेस से गठबंधन न करने के लिए बहुत दवाब डाला जा रहा है।
दिग्विजय ने ये दिया था जवाब…
बसपा प्रमुख मायावती द्वारा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पर लगाए गए गंभीर आरोपों पर दिग्विजय सिंह ने भी सफाई दी। दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं ये बात पहले ही साफ कर चुका हूं कि मैं मायावती जी का बहुत सम्मान करता हूं और वह भी कांग्रेस-बसपा गठजोड़ की प्रबल समर्थक रही हैं।
लेकिन छत्तीसगढ़ में, गठबंधन की बात चल रही थी लेकिन वह उसमें शामिल नहीं हुईं। वहीं मध्य प्रदेश में भी गठबंधन की बात चल रही थी, उन्होंने 22 सीटों पर उम्मीदवार भी घोषित कर दिए थे।
दिग्विजय सिंह ने आगे कहा कि जहां तक मेरा सवाल है, कृपया उनसे पूछिए, मैं मोदी जी और अमित शाह जी, बीजेपी और आरएसएस का सबसे कट्टर विरोधी हूं। राहुल गांधी हमारे कांग्रेस के मुखिया हैं, हम उनके आदेशों का पालन करेंगे।
क्या कहते हैं जानकार…
राजनीति के जानकार डीके शर्मा के अनुसार मध्य प्रदेश के चुनावों में भले ही विकास की कितनी भी बात हो, लेकिन कास्ट फैक्टर हमेशा मायने रखता है। ऐसे में बसपा का कांग्रेस के साथ न होना उसे कहीं न कहीं बड़ा नुकसान दे सकता है।
उनके अनुसार दरअसल प्रदेश की 35 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, लेकिन इन सीटों के अलावा 100 से ज़्यादा सीटें ऐसी हैं जहां दलित वोट मायने रखता है, इनमें से 59 सीटों पर बीएसपी का एक बड़ा वोटबैंक है।
प्रदेश में जातिगत आधार पर वोटबैंक पार्टियों की प्राथमिकता रही है। 35 एससी और 47 एसटी विधानसभा सीटें मिलाकर 82 सीटों पर BJP और कांग्रेस दोनों की नज़र रहती है। लेकिन इन सीटों के अलावा कई सीटें ऐसी हैं जहां सीट आरक्षित भले ही न हो लेकिन वर्ग विशेष वोटर्स का प्रतिशत गणित बिगाड़ने और बनाने का काम करता है।
इनमें से ज़्यादातर सीटों पर बीएसपी दूसरी या तीसरे नंबर की पार्टी है। यही वजह है कि कांग्रेस और बीएसपी के संभावित गठबंधन से बीजेपी भी थोड़ी परेशान सी थी। बसपा का सीटों पर गणित…
– इन 59 सीटों में 41 सीटें बीजेपी, 17 सीटें कांग्रेस और 1 सीट बीएसपी के पास है।
– खास बात ये है कि इन 59 सीटों में 12 सीटों पर बीएसपी दूसरे नंबर की पार्टी रही है।
– बीएसपी का दबदबा रखने वाली इन 59 सीटों में से 12 सीटों पर पहली और दूसरे नंबर की पार्टी से हार का मार्जिन 2.5 हज़ार से कम है।
– 4 सीटों पर अंतर 2.5 हज़ार से 5 हज़ार के बीच है, जबकि 5 से 10 हज़ार के अंतर वाली 16 सीटें हैं।
– यानि कि 10 हज़ार से कम अंतर वाली 59 में से 32 सीटें हैं।
– इसके अलावा 59 सीटें और ऐसी हैं जहां पर अनुसूचित जाति वर्ग का वोट 25 से 30% तक है।
– प्रदेश में एससी वर्ग की 35 सीटें आरक्षित हैं। जिसमें से वर्तमान में 2 कांग्रेस, 3 बीएसपी और 30 बीजेपी के पास हैं।
– 35 आरक्षित सीटों में 8 सीटों पर पहली और दूसरी सीट के बीच का अंतर 5 हज़ार से कम रहा है, वहीं 5 सीटें 5 से 10 हजार के अंतर वाली हैं।
– यानि 94 सीटों में 45 सीटों पर हार का अंतर 10 हज़ार से कम रहा है जहां बीएसपी दूसरे और तीसरे नंबर की पार्टी रही है और उसे 10 हज़ार से ज्यादा वोट मिले हैं।
– अनुसूचित जाति आरक्षित 35 सीटें भले ही हों लेकिन 100 से ज़्यादा सीटें हैं जहां दलित वोट बैंक खासा दबदबा रखता है।