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भोपाल

… तो इस कारण कांग्रेस के ‘हाथ’ से निकल गया मध्य प्रदेश!

होली के एक दिन पहले से जारी सियासी संग्राम शुक्रवार को कमलनाथ के इस्तीफे के बाद अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया

भोपालMar 21, 2020 / 01:32 pm

Devendra Kashyap

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भोपाल। कमलनाथ ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। दरअसल, होली के एक दिन पहले से जारी सियासी संग्राम शुक्रवार को कमलनाथ के इस्तीफे के बाद अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया। बताया जा रहा है कि ये सब सिर्फ और सिर्फ एक गलती के कारण हुआ।
जानकार बता रहे हैं कि अगर कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश कांग्रेस की कमान अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंप देते तो आज ये नौबत नहीं आती। प्रदेश में कमलनाथ की सरकार भी रहती और सिंधिया भी पार्टी छोड़कर नहीं जाते। साथ ही कांग्रेस के हाथ में मध्य प्रदेश का कमान भी रहता।
दरअसल, 2018 में जब प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, तब सिंधिया सीएम पद के लिए अड़े हुए थे लेकिन आलाकमान ने कमलनाथ पर मुहर लगा दी। उस वक्त राहुल गांधी किसी तरह सिंधिया को मनाया, तब ही से सिंधिया गुट आलाकमान से ‘महाराज’ को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग करते रहे लेकिन किसी नहीं सुनी।
ठिकाने लगाने पर आमदा हो गया कमलनाथ गुट!

जानकार बताते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया पीसीसी चीफ बनने का इंतजार करते लेकिन कमलनाथ सीएम पद के साथ-साथ पीसीसी चीफ पद से भी चिपके रहे। हद तो तब हो गई जब कमलनाथ गुट और दिग्विजय सिंह गुट एक होकर सिंधिया को ठिकाने लगाने पर आमदा हो गया।

दरअसल, लोकसभा चुनाव हारने के बाद सिंधिया की आखिरी उम्मीद राज्यसभा चुनाव पर टिकी थी। लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय सिंह गुट एक होकर यहां भी दरकिनार करने की रणनीति बनाने लगे, जिसकी भनक सिंधिया को लग गई।

कमलनाथ का एक बयान और शुरू हो गया ‘ऑपरेशन कमल’

इसी बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किसानों की एक सभा में सड़क पर उतरने की बात कही। सिंधिया का ये बयान सियासत में बवाल ला दिया। इस बाबत जब कमलनाथ से पूछा गया तो उन्होंने भी कहा दिया कि उतर जाएं। कमलनाथ का ये बयान सुन सिंधिया को भृकुटी तन गई और प्रदेश में शुरू हो गया ‘ऑपरेशन कमल’। जानकार बताते हैं कि कमलनाथ के इस बयान के बाद ही सिंधिया ने अपने गुट के विधायकों से पहले बात की। जब उनके गुट के विधायकों ने हरी झंडी तो ‘महाराज’ बड़े कदम उठाने को तैयार हो गए।

दरअसल, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को उम्मीद थी कि सिंधिया गुट के विधायक उनके साथ नहीं जाएंगे और समय रहते सब मैनेज हो जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। सिंधिया ने तगड़ा दांव खेलते हुए इस्तीफा देने से पहले भाजपा के मदद से विधायकों को बेंगलुरू पहुंचवा दिया और बाद खुद इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए।

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