राज्य के विभिन्न विभागों में एक लाख से अधिक पद रिक्त हैं। जबकि राज्य में बेरोजगारों की संख्या इससे कई गुना ज्यादा है। वहीं विभिन्न विभागों में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी, संविदा कर्मी, स्थाईकर्मियों की संख्या दो लाख से अधिक है।
राज्य सरकार का सामान्य प्रशासन विभाग रिक्त पदों के मामले में जानकारी जुटा रहा है। सभी विभागाध्यक्षों, कलेक्टरों से स्थाईकर्मियों के मामले में छह बिन्दुओं पर जानकारी मांगी थी। इसमें प्रमुख तौर से पूछा गया था कि कितने स्थाईकर्मी पदस्थ हैं, ये कब से काम कर रहे हैं। लेकिन ज्यादातर जानकारी नहीं भेजी है। अब इनसे फिर से कहा गया है कि वे जल्द से जल्द जानकारी भेज दें।
मध्यप्रदेश कर्मचारी मंच के प्रांताध्यक्ष अशोक पाण्डेय का कहना है कि सरकार को चाहिए कि सबसे पहले स्थाईकर्मियों, संविदाकर्मियों, कम्प्यूटर ऑपरेटर, और आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को योग्यता के आधार पर नियमित नियुक्ति दे। इसके बाद यदि पद बचते हैं तो सीधी भर्ती करे। सुप्रीमकोर्ट भी स्थाईकर्मियों, संविदा कर्मियों को नियमित करने के आदेश दे चुका है। सरकार ने भी वर्ष 2016 में आदेश जारी कर नियमितीकरण के आदेश दिए थे, लेकिन इसका पालन नहीं हो पाया।
सूबे के विभिन्न विभागों में हजारों की संख्या में पद रिक्त हैं, लेकिन नियुक्तियां न होने से लाखों की संख्या में युवा ओवरएज हो गए। सबसे बड़ी समस्या उम्मीदवारों की आयुसीमा को लेकर है। अब यह मांग उठने लगी है कि सरकार आयु सीमा बढ़ाए जिससे नौकरी के इंतजार में ओवरएज हुए युवाओं को आवेदन करने का मौका मिल सके। राज्य के रोजगार पोर्टल पर 32 लाख 84 हजार से अधिक बेरोजगार दर्ज हैं। इनको नौकरी की जरूरत है। इनमें से 90 फीसदी मध्यप्रदेश मूल के निवासी हैं।
राज्य में सरकारी पदों पर नियुक्ति न होने की बड़ी वजह सरकार की सरकारी नीतियां रहीं। पिछले दो दशक में नियमित नियुक्ति के बजाय अस्थाई कर्मियों को ज्यादा भर्ती किया गया। आउटसोर्स पर भी कर्मचारी रखने की परम्परा शुरू हो गई। इससे सरकार को आर्थिक बोझ भी कम पड़ा। वहीं सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट एज 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई। इससे पदों के रिक्त होने की संख्या स्थिर हो गई और नए लोगों को मौका नहीं मिला।
48 हजार स्थाई कर्मी
80 हजार संविदा कर्मी
60 हजार कम्प्यूटर ऑपरेटर
40 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता
(नोट – जानकारी कर्मचारियों से चर्चा के आधार पर) प्रमुख विभागों में रिक्त पदों की स्थिति –
स्कूल शिक्षा – 10345
गृह – 7661
स्वास्थ्य- 35000
वन – 7425
राजस्व – 5000
कृषि – 2500
महिला बाल विकास – 13000
पंचायत एवं ग्रामीण – 12000
आदिम जाति कल्यरण – 5629
उद्यानिकी – 3238
उद्योग – 2156
सहकारिता – 13256
श्रम – 1 219
नगरीय प्रशासन एवं विकास – 13226
लोक निर्माण – 7128
जल संसाधन 10219
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति – 9216
पशु पालन – 5218
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी – 10221
पर्यटन – 5217
उच्च शिक्षा – 5203
ग्रामोद्योग – 5938
तकनीकी शिक्षा – 5036
पिछड़ा वर्ग – 9116