दरअसल, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पद संभालने के बाद चुनिंदा प्रमुख सचिवों से उनके विभाग के बेहद महत्वपूर्ण मुद्दों की जानकारी तलब की है। सामान्य प्रशासन विभाग को आरक्षण का मुद्दा पेश करना है। इसकी प्रारंभिक तैयार हो चुकी है।
सितंबर में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कर्मचारियों के प्रमोशन को लेकर एससी-एसटी के पिछड़ेपन के लिए डाटा जुटाने की अनिवार्यता खत्म कर दी थी। कोर्ट ने एम नागराजन के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें प्रमोशन में आरक्षण अनिवार्य नहीं बताया गया था।
74187 – एसटी के पद खाली
20 हजार बिना प्रमोशन के सेवानिवृत्त
कोर्ट में मामला लंबे समय तक अटकने से प्रदेश में करीब 20 हजार अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए। नाराजगी का माहौल बनता देख सरकार ने सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 कर दी थी।
गौरतलब है कि मप्र में 2002 के अधिनियम के तहत प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान किया था, जिसे बाद में जबलपुर हाईकोर्ट ने 2016 में रद्द कर दिया था। तब मध्यप्रदेश सरकार इसके खिलाफ कोर्ट चली गई और तब से यह मुद्दा लगातार गरमाया हुआ है।
अब कमलनाथ के लिए इस मुद्दे पर मुश्किल हालात हैं। क्योंकि, अजाक्स और सपाक्स दोनों ही वर्ग उनसे अपने पक्ष में होने की उम्मीद कर रहे हैं। पिछले चुनाव में दोनों धड़े भाजपा सरकार से नाराज थे।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आरक्षण का मुद्दा भारी पड़ा था। जबलपुर हाईकोर्ट ने जब उत्तरप्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी
प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने का आदेश दिया तो शिवराज सरकार ने कोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण बरकरार रखने के लिए याचिका लगाई थी।