प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि हादसे के वक्त बस की रफ्तार 80-85 किमी प्रतिघंटा रही होगी। यही वजह कि पलटने के बाद बस करीब 20 फीट तक घिसटी। जिससे बस के सामने व एक साइड की खिड़कियों के सभी कांच क्षतिग्रस्त हो गए। वहीं, चालक को भी गंभीर चोट लगी है।
गेट की तरफ पलटी बस, ग्रामीणों ने लहूलुहान यात्रियों को कांच तोड़कर निकाला
बस यात्री गेट की तरफ पलटी थी। इससे हादसे में घायल यात्री करीब 10 मिनट तक बस के अंदर ही फंसे रहे। चीख-पुकार सुनकर इलाके के लोग जमा हुए। जिन्होंने बस के चालक सीट की तरफ की खिड़कियों के कांच तोड़कर यात्रियों को बाहर निकाला। कई यात्री सीट के नीचे गैप में फंसे हुए थे, जिन्हें निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।
बस के चालक, कंडक्टर ने पुलिस से दावा किया कि अचानक बस के अगले पहिए की एक तरफ की कमानी टूट गई। इससे बस अनियंत्रित हो गई। बस को चालक नियंत्रित करता इससे पहले बस सड़क से उतरकर पटरी में आ पहुंची। पटरी में ढलान होने की वजह से बस पलट गई।
बस की केबिन में बड़ी मात्रा में पार्सल रखा हुआ मिला है। पुलिस इसके वजन की जांच कर रही है। बस में तय मानक से अधिक मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
– हरिशंकर पाण्डेय, टीआई, खजूरी
भोपाल. फंदा के पास दुर्घटनाग्रस्त होने वाली वर्मा ट्रेवल्स की बस कई स्तर पर अधिनियम, नियम एवं कराधान अधिनियमों की धज्जियां उड़ा रही थी। स्लीपर कोच बस क्र.एमपी-04 पीए 4156 को एक मार्च 2016 से दिसम्बर 2019 तक का अस्थाई परमिट भोजपुर से इंदौर का हासिल था। 5जनवरी 2019 को इस बस को 5 से 10 जनवरी 2019 तक भोपाल से शिरडी तक आने-जाने का एक अस्थाई परमिट भी मिल गया।
बस को दूसरा अस्थायी परमिट कैसे मिला
बड़ा सवाल यह है कि एक अस्थाई परमिट होते हुए बस को दूसरा अस्थाई परमिट कैसे मिल गया? जबकि गाड़ी के एक परमिट को सरेंडर करने के बाद ही दूसरा परमिट जारी किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि भले ही बस के पास तीन साल का अस्थाई परमिट हो, लेकिन इसका कभी भोजपुर से संचालन हुआ ही नहीं।
व्हीकल आइडेंटिफिकेशन नंबर से किसी भी कंपनी के मॉडल का पता लगाया जा सकता है। विन नंबर से आईडेंटीफाई किया गया तो बस अक्टूबर 2015 की निकली जबकि इसे आरटीओ में 2016 की बस के रूप में रजिस्टर्ड कराकर मनमाने तरीके से स्लीपर और सिटिंग निकाली गई। इससे न केवल टैक्स की चोरी हुई बल्कि दुर्घटना को भी आमंत्रण मिला।
संजय तिवारी, आरटीओ, भोपाल