नागर ने भ्रष्टाचार की जांच अपने अधीनस्थ एसडीओ आरएस भदौरिया से करवाकर क्लीनचिट ले ली। इस पर लोकायुक्त ने नाराजगी जाहिर की है। लोकायुक्त संगठन ने विभाग से पूछा है कि वरिष्ठ अफसर के भ्रष्टाचार की शिकायत की जांच उसका अधीनस्थ कैसे कर सकता है। अब विभाग ने इसकी जांच का जिम्मा अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक दिलीप कुमार को दिया है।
विस्थापित गांवों में कराए गए विकास कार्यों में भी गड़बड़ी के आरोप लगे। लोकायुक्त ने पाया कि गुणवत्ता वाला काम नहीं हुआ। अफसरों के करीबी ग्रामीणों के हितों को ध्यान में रखकर विकास कार्य कराए। इसमें आर्थिक अनियमितता के भी आरोप लगे।
हजारों हितग्राहियों के चयन का मामला
तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर एके नागर पर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के करीब 30 वनग्रामों के विस्थापन में हजारों हितग्राहियों के चयन में गड़बड़ी का आरोप लगा था। उनके नाम पर पैसे भी निकाले गए। विस्थापन के लिए करीब 66 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए थे, जिसमें बंदरबांट की गई। इस मामले की लोकायुक्त में हुई थी। इसकी जांच चल रही है।
कई बार हुई जांच नतीजा कुछ नहीं
वर्ष 2015-16 में हुए विस्थापन को लेकर लोकायुक्त में तीन शिकायतों के अलावा वन विभाग के अफसरों से कई शिकायतें की गईं। विभाग के अफसरों ने अपने स्तर पर जांच के नाम पर खानापूर्ति करवाई गई। कई जूनियर अफसरों से भी जांच करवाई गई। लोकायुक्त संगठन ने आरएस भदौरिया की रिपोर्ट के आधार पर नागर को मिली क्लीनचिट को आधार बनाकर इस मामले की फिर से जांच करने को कहा।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक एमके सप्रा के अनुसार सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में हुए विस्थापन कार्य की जांच वरिष्ठ अफसर से करवाई जा रही है। जांच के बाद जो तथ्य सामने आएंगे, उनके अनुसार कार्रवाई की जाएगी। जबकि तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर एके नागर कहते हैं, मेरा तो छोटा सा कार्यकाल था। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को लेकर कई शिकायतें हुई थी। वहां जो भी काम करो, उसकी शिकायत हो जाती थी। ऐसा कई बार हुआ है।