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भोपाल

10वीं पास को बनाया डॉक्टर !

एमए, योग और दूसरे के नाम की डिग्री वाले बने आयुष डॉक्टर, जांच कमेटी ने उजागर किया पूरा खेल, शासन को भेजी रिपोर्ट…

भोपालMay 08, 2018 / 09:03 am

anil chaudhary

 rarer surgery

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जितेन्द्र चौरसिया, भोपाल. प्रदेश में आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी डॉक्टर बनाने में बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। दूसरे के नाम के दस्तावेज पर डॉक्टरी कर ली गई। दसवीं और आर्ट विषय पास युवाओं को आयुष डॉक्टर बना दिया गया।
जबकि, इसके लिए बॉयो साइंस के साथ बारहवीं पास होना जरूरी है। इनका लाइसेंस नवीनीकरण होम्योपैथी परिषद से बार-बार होता रहा। इनमें से कोई चिकित्सा अधिकारी है तो कोई आयुष कॉलेजों में पढ़ा रहा है।
ये पूरा खेल आयुष विभाग की जांच रिपोर्ट में सामने आया है। जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट विभाग को सौंप दी है। रिपोर्ट की कॉपी ‘पत्रिका’ के पास है।

ऐसे मामले आए मामले…
केस-01
डॉ. अशोक पचौरी, डीएचएमएस
होम्योपैथी डिप्लोमा डीएचएमएस में प्रवेश की पात्रता ही नहीं थी। इनका ग्रुप साइंस बॉयो नहीं था। प्रथम व द्वितीय वर्ष की अंकसूची तक नहीं थी। पचौरी ने तर्क दिया कि 11वीं विज्ञान से उत्तीर्ण की। इसमें भौतिक रसायन विषय था।
फिर बीएससी प्रथम वर्ष में रसायन और भौतिक गणित विषय थे। इसके दो साल बाद योग डिप्लोमा किया। जांच कमेटी ने पूछा तो बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) ने बताया कि पचौरी ने कभी प्रवेश ही नहीं लिया। फिर पचौरी ने जीवाजी विवि ग्वालियर से बीएससी करना बताया। इसके भी प्रमाण नहीं मिले।
जांच कमेटी ने निष्कर्ष दिया कि योग डिप्लोमा से होम्योपैथी नहीं हो सकती। होम्योपैथी में प्रवेश अवैध, इसलिए 11 जनवरी 2012 से पंजीयन को रद्द किया जाए।

केस-02
डॉ. अशोक सिंह बुंदेला, होम्योपैथी चिकित्सा अधिकारी
डीएचबी एवं डीएचएमएस होम्योपैथी डिप्लोमा प्रथम वर्ष में प्रवेश पात्रता ही नहीं है। प्रवेश के लिए १२वीं बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए, लेकिन इनका प्रवेश उत्तर प्रदेश की 10वीं की अंकसूची के आधार पर हुआ। 12वीं भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र या जीव विज्ञान के साथ होना चाहिए।
जो अंकसूची दी, उस पर बुंदेला सरनेम भी नहीं लिखा। इसमें अशोक प्रताप सिंह पुत्र दीवान लखन सिंह लिखा है। जांच कमेटी ने निष्कर्ष दिया कि बुंदेला ने मूल नियम के तहत भौतिक, रसायन या जीव विज्ञान नहीं पढ़ा, इसलिए ५ जून १९८४ से रजिस्ट्रेशन ही अवैध है।
केस-03
डॉ. एसएन सिंह, डायरेक्टर, सेंधवा होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज
शैक्षणिक योग्यता के बिना डीएचबी में प्रवेश मिला। वर्ष-1962 में माध्यमिक शिक्षा मंडल से 12वीं गणित से पास की। उनका डीएचबी पास करने का प्रमाण पत्र 1968 का है। इस पर चार नवंबर 1980 तिथि दर्ज है। वहीं, जारी होने की तारीख 16 फरवरी 1969 दर्ज है।
राज्य होम्योपैथी परिषद से सिंह को 16 दिसंबर 1968 को पंजीयन प्रमाण पत्र जारी हुआ। जबकि, प्रमाण-पत्र पर रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर १२ अक्टूबर १९८९ को हुए। जांच कमेटी ने ये प्रमाण संदिग्ध मानकर पंजीयन रद्द करने के लिए लिखा है।

केस-04
डॉ. गीता तिवारी, शासकीय होम्योपैथी महाविद्यालय चूनाभट्टी
प्रवेश की पात्रता ही नहीं। 1982 में भौतिक रसायन व गणित विषय से १२वीं उत्तीर्ण की। फिर प्री-होम्योपैथी मेडिकल एक्जामिनेशन के जरिए कमला नेहरू होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज जबलपुर में प्रवेश लिया। डीएचएमएस में प्रवेश के लिए पहला गजट नोफिकेशन 30 अक्टूबर 1982 और दूसरा २६ जुलाई 1984को हुआ।
दूसरे नोटिफिकेशन में प्रवेश परीक्षा को पात्रता परीक्षा लिखा गया, लेकिन इसका उल्लेख नहीं किया। नोटिफिकेशन में जीव विज्ञान के अलावा अन्य विषय से डिप्लोमा पर डीएचएमएस में प्रवेश का उल्लेख, लेकिन यह सेंट्रल एक्ट 1973 का उल्लंघन है। दूसरा नोटिफिकेशन केवल 1983-84 के लिए था, लेकिन निरंतर किया गया। जांच कमेटी ने गीता का पंजीयन निरस्त करने की अनुशंसा की है।
केस-05
डॉ. जयप्रकाश वर्मा पिता गयाप्रसाद शर्मा, शा. होम्योपैथी चिकित्सा अधिकारी
हायर सेकंडरी व एमए आर्ट से होने के बावजूद होम्योपैथी में प्रवेश। 1974 में हायर सेकंडरी, 1971 में आट्र्स से बीए और 1984 में एमएएलएलबी करने की डिग्री है। 23 नवंबर 2016 में रजिस्ट्रार के जांच प्रतिवेदन में लिखा कि इस नाम से कोई पंजीयन ही नहीं हुआ। हालांकि, परिषद के रजिस्टर में 28 अप्रैल 1984 को डीएचबी पास का पंजीयन है।
जांच में पाया कि जयप्रकाश वर्मा पिता गयाप्रसाद शर्मा के नाम से शैक्षणिक दस्तावेज भी नहीं हैं, जो दस्तावेज मिले उसमें किसी जयप्रकाश वर्मा पिता सच्चिदानंद की अंकसूचियां हैं। पिता का नाम, निवास और जन्मतिथि भी अलग है। पिता के सरनेम पर भी भ्रम। होम्यापैथी परिषद ने किसी दूसरे जयप्रकाश वर्मा पिता सच्चिदानंद की अंकसूचियों पर जयप्रकाश वर्मा पिता गयाप्रसाद को गलत लाभ दिया। कमेटी ने गहन जांच के लिए लिखा।
केस-06
डॉ. हरीलाल मेवाड़े, आयुष डॉक्टर
18 नवंबर 2013 को पंजीयन किया गया, लेकिन रजिस्ट्रार ने हस्ताक्षर 10 नवंबर 2013 को आठ दिन पूर्व एडवांस में ही कर दिए। इससे यह पंजीयन ही अवैध हो गया। यह प्रमाण-पत्र संदिग्ध। इसके दस्तावेज भी संदिग्ध पाए।
केस-07
डॉ. सुनील तिवारी, डीएचएमएस
डीएचएमएस में प्रवेश गलत। वर्ष-1987 में माध्यमिक शिक्षा मंडल से कॉमर्स विषय में 12वीं पास की। साइंस विषय नहीं था। पंजीयन निरस्त करने की अनुशंसा की गई। इसमें बिना दस्तावेज देखे ही रजिस्ट्रार के स्तर पर प्रवेश दिया गया। बाद में इनके पंजीयन का नवीनीकरण भी किया गया।
रजिस्ट्रार की भूमिका संदिग्ध
जांच कमेटी ने राज्य होम्योपैथी परिषद की रजिस्ट्रार आयशा अली की भूमिका भी संदिग्ध मानी है। कमेटी ने लिखा कि रजिस्ट्रार ने बिना सही व पूर्ण प्रमाण पत्र देखे ही बार-बार लाइसेंस नवीनीकरण किया।
यूं उजागर हुआ मामला
28 नवंबर 2015 को अनिल श्रीवास्तव ने मामले की शिकायत की। तब आयुष उपसंचालक डॉ. प्रदीप चतुर्वेदी, सहायक संचालक डॉ. वंदना बोराना और ओएसडी डॉ. जेके गुप्ता की जांच कमेटी गठित की गई। कमेटी ने जांच कर फरवरी 2018 में होम्योपैथी रजिस्ट्रार से सत्यापन कराया।

जांच शासन स्तर पर है। यह रजिस्ट्रेशन-प्रवेश पूर्व के हैं। आरोप गलत हैं। जांच रिपोर्ट आने पर कदम उठाएंगे।
– डॉ. आयशा अली, रजिस्ट्रार, राज्य होम्योपैथी परिषद

अभी जांच कमेटी की रिपोर्ट नहीं देखी है। रिपार्ट और रेकार्ड देखने के बाद ही इस बारे में कुछ बताया जा सकेगा।
– शिखा दुबे, प्रमुख सचिव, आयुष विभाग

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