न बाव हमीदुल्ला खां के चचेरे भाई रशिदुर जफर ने 1906 में इस स्कूल की नींव रखी। उनके नाम पर स्कूल का नाम रशीदिया पड़ा। पत्थरों से बनी मेहराबदार इमारत खूबसूरत होने के साथ बेहद मजबूत भी थी। बनने के समय करीब साढ़े नौ एकड़ का रकबा इस स्कूल के परिसर से लगा हुआ था। भोपाल रियासत के विलय के समय स्कूल शिक्षा विभाग को मिल गया। पुराने शहर में कई परिवार तो ऐसे हैं जिनकी तीन- तीन पीढिय़ों ने इसी स्कूल में पढ़ाई की। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर, पूर्व महापौर सुनील सूद सहित कई नामी राजनेता, उद्योगपति तक इस स्कूल के छात्र रहे हैं।
रशीदिया स्कूल की 112 साल पुरानी इमारत के साथ इतिहास का एक दस्तावेज भी दफन हो गया है। 2014 में स्कूल के ऐतिहासिक भवन को बचाने के लिए पीडब्ल्यूडी से एस्टीमेट बनवाया गया था। जिसमें 52 लाख से स्कूल का रिनोवेशन की बात सामने आई थी, लेकिन इस प्रस्ताव पर अमल नहीं किया गया।
90 के दशक में रशीदिया में पढ़ा चुके सैय्यद अब्दुल अजीज वस्तवी बताते हैं कि ढाई दशक पहले तक भी स्कूल का परिसर काफी बड़ा था। हालांकि 80 का दशक आते-आते स्कूल का रकबा साढ़े तीन एकड़ तक सिमट गया था। इसकी गिनती शहर के सबसे बड़े स्कूलों में होती थी। 80 के दशक के बाद से अतिक्रमणों की रफ्तार और बढ़ती गई और स्कूल का स्वरूप ही बदल गया। 90 के दशक में भी हुई नाम हटाने की कोशिश लगभग ढाई दशक पहले बरखेड़ी कन्या शाला को रशीदिया में शिफ्ट किया गया तो कन्या शाला की तत्कालीन प्राचार्य ने लड़कियों की सुविधा का हवाला देकर रशीदिया स्कूल को कहीं और शिफ्ट करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन तब इसे रोक दिया गया। विद्यालय की प्राचार्य स्मिता मेश्राम बताती हैं परिसर में तीन मंजिला नई बिल्डिंग लगभग पूरी हो गई है। परिसर में ऐसी कोई जगह नहीं बची थी जहां खेल मैदान बन सके। चार महीने पहले पुराने भवन को ढहा दिया गया।