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भोपाल

खुद लड़ती हैं अपना केस, दूसरी पीडि़ताओं की मदद करने कर रहीं एलएलबी की पढ़ाई

मानवाधिकार दिवस पर विशेष: पति ने दुत्कारा तो बच्चों के हक के लिए आगे आईं महिलाएं

भोपालDec 09, 2018 / 08:22 pm

Rohit verma

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खुद लड़ती हैं अपना केस, दूसरी पीडि़ताओं की मदद करने कर रहीं एलएलबी की पढ़ाई

भोपाल से रोहित वर्मा की रिपोर्ट. भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक मनुष्य को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं। जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। यह सभी अधिकार भारतीय संविधान के भाग-तीन में मूलभूत अधिकारों के नाम से वर्णित किए गए हैं और न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हंै, जिसकी ‘भारतीय संविधान’ न केवल गारंटी देता है, बल्कि इसका उल्लंघन करने वालों को अदालत सजा भी देती है।

इन सबके बाद भी बड़ी संख्या में पीडि़ताओं को न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। इनका हर जगह माखौल उड़ाया जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे इन्होंने खुद और बच्चों के हक के लिए आवाज उठाकर कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो। इस संबंध में तीन अलग-अलग महिलाओं प्रज्ञा, रजनी और मीनाक्षी से उनके अधिकारों के बारे में बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा।

उन्होंने बताया कि थाने से लेकर कोर्ट तक किस तरह से उनका मजाक उड़ाया जाता है। कैसे-कैसे उनसे सवाल किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले पांच साल से कोर्ट में हमारे मामले चल रहें हैं। इन मामलों में सुनवाई तो दूर आज तक काउंसलिंग तक नहीं की गई। कोर्ट से आदेश होने के बाद भी उन्हें भरण-पोषण की राशि नहीं दी जा रही है।

 

न्याय पाने कर रहीं ला की पढ़ाई
पंद्रह साल पहले मेरी शादी महाराष्ट्र में हुई थी। पति सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर हैं। शादी के बाद से ही पति परेशान करने लगे। इसके बाद भी मैं अपना घर परिवार और बच्चों के भाविष्य को देखकर चुप रही। मेरे दो बच्चे हैं, जिनमें 15 साल की बेटी और 12 साल का बेटा है। पति ने दोनों को जबरन अपने पास रख लिया है। मुझे बच्चों से मिलने तक नहीं दिया जाता। हम बच्चों से मिलने उनके पास पुणे जाते हैं तो वहां हमारे साथ मारपीट करते हैं।

पांच साल पहले हमें घर से निकाल दिया। पिछले पांच साल से मामला कोर्ट में है, लेकिन आज तक न तो काउंसलिंग की गई और न ही बच्चों से मिलने दिया गया। सभी ओर से निराशा हाथ लगने के बाद न्याय पाने के लिए एलएलबी की पढ़ाई करने लगी।

इस वर्ष फाइनल ईयर में हूं। इसका मकसद खुद का केस लडऩे के साथ ही दूसरी ऐसी पीडि़ताओं की मदद करना है, जो मेरी जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं। मेरा माना है कि कोई भी पीडि़ता जब न्यायालय जाती है तो उसे न्याय से वंचित न रखा जाए। हर महिला को सक्षम बनना चाहिए और उसे अपने अधिकारों के लिए लडऩा चाहिए।
-मीनाक्षी, गजभे लालघाटी, भोपाल

 

मेरी शादी आठ साल पहले हुई थी। शादी के दूसरे ही दिन ससुर ने पास बुलाया और कहा, बहू मुझे गाड़ी की उम्मीद थी पर तेरे पापा ने 50 हजार भी नहीं दिए। इसके बाद से मुझे परेशान करने लगे। पति दिल्ली में सरकारी नौकरी में हैं। वहां ले जाकर भी मुझे यातनाएं दीं। सात साल का बेटा है। पति ने हम दोनों को घर से भगा दिया। पिछले तीन साल से कोर्ट में मामला है, पर अब तक कोई राहत नहीं मिली है। प्रज्ञा कुशवाहा, शिवनगर करोंद

शादी के दूसरे दिन से ही पति और घर वाले परेशान करने लगे। वे लोग नहीं चाहते थे कि मैं उस घर में रहूं। उन्होंने कहा कि मैने सिर्फ दहेज के लिए शादी की थी, तेरी कोई जरूरत नहीं है। कई बार पति को समझाने की कोशिश भी कि पर नहीं माने। ससुराल वालों ने मेरे साथ मारपीट तक की फिर भी घर बचाने के लिए मैं यह सब सहती रही। दोनों की काउंसिलिंग की गई फिर भी बात नहीं बनी। अब मामला कोर्ट में है।
रजनी अहिरवार, कोलार

मप्र में महिला एवं बच्चों से सम्बंधित लंबित मामले
वर्ष रजिस्टर्ड सुनवाई पूरी पेंडिंग
2014 28756 5773 60520
2015 24231 4233 61777
2016 26604 3888 67682

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