नाटक करने लगा तो घर बेचने की नौबत आ गई
शेखर ने बताया कि मैं तो संगीतकार बनने के लिए मुंबई गया था। वहां जाकर माहौल देखा तो लगा कि मैं शायद इस काम के लिए नहीं बना। इसके बाद खुद का संगीत तैयार किया और 227 गैर फिल्मी गीत तैयार किए। 1995 के आसपास माता-पिता के साथ अमेरिका गया। वहां देखा कि रामचरित मानस का एक प्रोफेसर ने चीनी भाषा में अनुवाद किया है। मुझे लगा कि हम भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ प्रतिनिधियों से क्यों नहीं जुड़ पा रहे हैं। मैंने भारत आकर कबीर पर लिखना शुरू किया। मैंने संगीत-गायन छोड़ दिया। नाटक की कहानी धर्मवीर भारती को सुनाई तो उन्होंने कहा कि इस नाटक में तुम्हीं डायरेक्शन करो और एक्टिंग भी। मैंने इसका संगीत भी खुद तैयार किया। 1999 में पहला शो किया। शो करने में खर्च तो हो रहा था लेकिन दर्शक नहीं आ रहे थे। एक साल में सारी जमा पूंजी खर्च हो गई। मैं 25 लाख में अपना घर बेचने वाला था। जो खरीदार घर आया उसने कहा कि मैं कबीर को बेघर नहीं कर सकता। उसके शब्दों ने मुझे मोटिवेट किया, इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा।
संगीत ही मेरे शब्द हैं
शेखर बताते हैं कि हमारे देश में कई शैलियों में गायन शैली में नाट्य मंचन किया जाता है। मेरे नाटक में भी भाषा संगीत ही है। मैंने अपने नाटकों को इस तरह तैयार किया है कि मैं सीन-1 या सीन-2 करूं तो दर्शक पिछले सीन में ना डूबा रहे। अक्सर कलाकार और मेकअप मैन छोड़ चले जाते थे, इसलिए नाटक में मैं एकल अभिनय ही करता हूं। मैं अपना मेकअप तक खुद ही करता हूं। अपने किरदारों से मुझे इतना लगाव है कि घर से खेत आते-जाते भी गाड़ी में बैठे-बैठे रिर्हसल करता रहता हूं। शेखर का कहना है कि हिंदी बेल्ट में दर्शकों की आदत है कि वे बिना टिकट लिए शो देखना चाहते हैं। मैंने नियम बना रखा है कि अपना कोई शो बिना टिकट नहीं करता। मेरी पत्नी-बच्चे भी टिकट लेकर ही शो देखने आते हैं। मुझे रंगकर्म से इतना प्रेम है कि जब संगीत नाटक अकादमी का अध्यक्ष बना तो भी समय निकालकर रिर्हसल जरूर करता था। मुझे दूसरी बार भी इसी पद का ऑफर मिला, लेकिन मैंने मना कर दिया कि मेरा थिएटर कहीं पीछे छूट जाएगा।