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भोपाल

श्राद्ध पक्ष: जीवात्मा के कल्याण व आत्माओं से संबंध बनाने का सर्वश्रेष्ठ समय

पितृपक्ष यानी श्राद्ध काल को सदैव ही मृत व्यक्तियों व पूर्वजों से जोड़कर देखा जाता है।

भोपालSep 12, 2017 / 03:39 pm

दीपेश तिवारी

shradh connection with soul
भोपाल। अध्यात्म की दृष्टि से पितृपक्ष रूह और रूहानी यानी आत्मा और आत्मिक उत्कर्ष का वो पुण्यकाल है, जिसमें कम से कम प्रयास से अधिकाधिक फलों की प्राप्ति संभव है। आध्यात्मिक दृष्टि से इस काल को जीवात्मा के कल्याण यानि मोक्ष के लिये सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है।
श्रद्धया इदं श्राद्धम्।
अर्थात् अपने पूर्वजों की आत्मिक संतुष्टि व शांति और मृत्यु के बाद उनकी निर्बाध अनन्त यात्रा के लिये पूर्ण श्रद्धा से अर्पित कामना, प्रार्थना, कर्म और प्रयास को हम श्राद्ध कहते है। इस पक्ष को इसके अदभुत गुणों के कारण ही पितृ और पूर्वजों से सम्बद्ध गतिविधियों से जोड़ा गया है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार यह पक्ष सिर्फ मरे हुये लोगों का काल है, यह धारणा सही नहीं है। श्राद्ध दरअसल अपने अस्तित्व से, अपने मूल से रूबरू होने और अपनी जड़ों से जुड़ने, उसे पहचानने और सम्मान देने की एक सामाजिक मिशन, मुहिम या प्रक्रिया का हिस्सा थी, जिसने प्राणायाम, योग, व्रत, उपवास, यज्ञ और असहायों की सहायता जैसे अन्य कल्याणकारी सकारात्मक कर्मों और उपक्रमों की तरह कालांतर में आध्यात्मिक और धार्मिक चादर ओढ़ ली।
पंडित शर्मा के अनुसार इस समय या काल को अशुभ काल मानना नादानी है। इस पखवाड़े में स्थूल गतिविधियों को महत्व नहीं दिया गया क्योंकि आध्यात्मिक दृष्टिकोण स्थूल समृद्धि और भौतिक सफलता को क्षणभंगुर यानि शीघ्र ही मिट जाने वाला मानता हैं, और भारतीय दर्शन इतने कीमती कालखंड का इतना सस्ता उपयोग नहीं करना चाहता।
आपको बता दें कि, ऐश्वर्य की कामना रखकर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने वाली समृद्धि की साधना भी इस पक्ष के बिना पूर्ण नहीं होती।महालक्ष्मी आराधना के द्वितीय खण्ड में इस पक्ष के प्रथम सप्ताह का प्रयोग होता है। संदर्भ के लिए लक्ष्मी उपासना का काल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी यानी राधाष्टमी से आरम्भ होकर कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक होता है। परम्पराओं के अनुसार इस काल में श्राद्ध, तर्पण, उपासना, प्रार्थना से पितृशांति के साथ जीवन के पूर्व कर्म जनित संघर्ष से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
धर्मसिन्धु में श्राद्ध के लिए सिर्फ पितृपक्ष समेत 96 काल खण्ड का विवरण प्राप्त होता है जो इस प्रकार हैं- वर्ष की 12 अमावास्याएं, 4 पुणादितिथियां, 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रान्तियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 15 पितृपक्ष, 5 अष्टका, 5 अन्वष्टका और 5 पूर्वेद्यु:।
मत्स्य पुराण में त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते यानी तीन प्रकार के श्राद्ध नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य का उल्लेख मिलता है।यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध है। पर भविष्य पुराण और विश्वामित्र स्मृति द्वादश श्राद्धों यदा, नित्य, नैमित्तिक, काम्यम, वृद्धि, सपिण्ड, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धयर्थ, कर्मांग, तीर्थ, यात्रार्थ और पुष्टि का उल्लेख है।
श्राद्ध की यह हैं कुछ खास बातें:—
मान्यता है कि हमारे पूर्वज पितृ पक्ष के 16 दिन धरती पर आते हैं। इस दौरान हमारे द्वारा शुद्ध मन से किया गया तर्पण उन्हें तृप्ति प्रदान करता है और वे हमें पवित्र आशीष प्रदान करते हैं।
ये हैं खास बातें…. 
– श्राद्ध करने के लिए तर्पण में दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है।
– ब्राह्मणों को भोजन और पिण्ड दान से के जरिए पितरों को भोजन दिया जाता है।
– ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा दी जाती है। 
– श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र(पुत्री की संतान), कुश और तिल चीजों को जरूर सम्मिलित करें।
– इस दिन अगर आपके घर में कोई भिखारी आ जाए तो उसे भी आदरपूर्वक भोजन कराना चाहिए।
– पितरों के श्राद्ध के दिन गाय और कौए के लिए भी भोजन निकालना चाहिए।
– जल का तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है।
– पितृ पक्ष में भोजन करने वाले ब्राह्मण के लिए भी नियम है कि श्राद्ध का अन्न ग्रहण करने के बाद कुछ न खाएं।
– श्राद्ध के दिन गाय, मछली, कुत्ता, कौआ, भिक्षुक और चींटी इन्हें आहार देने का अवसर आए तो उसे न चुकें।
– सुनिश्चित कुतप काल में धूप देकर पितरों को तृप्त करें।
– तुलसी का प्रयोग सर्वाधिक करें। तुलसी की गंध पितरों के लिए शांतिदायक होती है। 

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