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मप्र में किसी को नहीं दिया डॉ. वाकणकर सम्मान

मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग ने वर्ष 2005 में की थी शुरुआतपुरातत्व के क्षेत्र में दिए जाने वाले सम्मान के लिए स्थानीय लोग उपेक्षित

भोपालJan 26, 2019 / 10:09 am

दिनेश भदौरिया

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मप्र में किसी को नहीं दिया डॉ. वाकणकर सम्मान

दिनेश भदौरिया
भोपाल. मध्यप्रदेश शासन द्वारा विश्वप्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के नाम से स्थापित किया गए राष्ट्रीय सम्मान आज तक प्रदेश के किसी पुरातत्वविद् को नहीं दिया गया है। संस्कृति विभाग द्वारा यह पुरस्कार लगातार बाहर के ही पुरातत्वविदों को ही प्रदान किया गया है। यह हाल तब है, जब भोपाल, जबलपुर समेत प्रदेश के कई हिस्सों में ऐसे नामचीन पुरातत्वविद् मौजूद हैं और लगातार काम कर रहे हैं, जिनके काम और ज्ञान का दुनिया लोहा मानती है।
नीमच में जन्मे प्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के नाम से मध्यप्रदेश शासन ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय पुरस्कार स्थापित किया था। इस पुरस्कार के तहत संस्कृति विभाग द्वारा पुरासंपदा के संरक्षण एवं पुरातात्विक संस्कृति के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर की उत्कृष्ट प्रतिभा या संस्था को दो लाख रुपए की राशि, प्रशस्ति पत्र व सम्मान पट्टिका से अलंकृत किया जाता है।
पहली बार यह सम्मान वर्ष 2005-06 में डॉ. स्वराज प्रसाद गुप्ता, नई दिल्ली को प्रदान किया गया था। इसके बाद अगले वर्ष यह सम्मान डेक्कन कॉलेज, पुणे के प्रो. वीएन मिश्रा को प्रदान किया गया। वर्ष 2007-08 का सम्मान बीएचयू, वाराणसी के डॉ. टीपी वर्मा, वर्ष 2008-09 के लिए यह सम्मान नई दिल्ली के प्रो. बीबी लाल को प्रदान किया गया। वर्ष 2009-10 के लिए प्रो. ए सुन्दरा व 2010-11 के लिए नई दिल्ली के केएन दीक्षित को इस सम्मान से नवाजा गया। वर्ष 2013-14 के लिए यह सम्मान प्रो. दिलीप चक्रवर्ती को प्रदान किया गया।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि भोपाल के प्रो. रहमान अली, डॉ. नारायण व्यास और जबलपुर के डॉ. आरके शर्मा जैसे देश-दुनिया में नामचीन पुरातत्वविद् होते हुए इस पुरस्कार से आज तक वंचित हैं। प्रो. रहमान अली ने मंदिर स्थापत्य कला को लेकर उल्लेखनीय कार्य किए हैं तो डॉ. आरके शर्मा ने भारतीय मूर्तिकला व इतिहास पर बड़े कार्य किए।
डॉ. नारायण व्यास से तो दुनिया के कई देशों के पुरातत्ववेत्ता जानकारी लेने यहां आते हैं। उन्होंने शैलचित्र कला पर हिंदी में देश-दुनिया की पहली व एकमात्र डीलिट् की। गुजरात के पाटन स्थित रानी की बावड़ी एक ही स्मारक पर पीएचडी की। पुरातत्व, संस्कृति व इतिहास के क्षेत्र में ढेरों उपलब्धियां होते हुए उन्हें तक यह पुरस्कार प्रदान नहीं किया गया। भीमबैठका में डॉ. नारायण व्यास अपने गुरु डॉ. वाकणकर के साथ थे। उनका लंबा साथ रहा। डॉ. वाकणकर की पत्नी स्व. लक्ष्मी वाकणकर ने इस सम्मान को डॉ. व्यास को प्रदान किए जाने की सिफारिश की थी, लेकिन वे इस अभिलाषा को लेकर दुनिया से विदा हो गईं।

प्रदेश में अभी तक पुरातत्वविद् को यह सम्मान क्यों नहीं दिया गया, इस बारे में जानकारी लेने के बाद ही कुछ बताया जा सकेगा।
– रेनू तिवारी, एसीएस, संस्कृति विभाग

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