निजी इस्तगासे पर सुनवाई के बाद अदालत ने 26 सितंबर 18 को चारों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने के आदेश दिए थे। राजनीतिक मामलों के लिए गठित विशेष कोर्ट के जज सुरेश सिंह की अदालत में 8 माह बाद पुलिस ने खात्मा प्रतिवेदन पेश किया।
श्यामला हिल्स थाने के उपनिरीक्षक बीएस कुशवाहा ने खात्मा स्वीकार करने के लिए प्रतिवेदन पेश किया। इसमें बताया है कि विवेचना के दौरान यह पाया गया कि आरोपियों ने कोई अपराध घटित नहीं किया है।
इस संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिले जिससे साबित हो कि दस्तावेजों में कूटरचना और उपयोग किया गया है।
वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति और विधिक अभिमत के बाद खात्मा प्रतिवेदन पेश किया जा रहा है। अदालत ने मामले में फरियादी संतोष शर्मा के बयान के लिए 22 जून की तारीख तय की है।
भाजपा विधि प्रकोष्ठ के संयोजक संतोष शर्मा ने जिला अदालत में दिग्विजय सिंह सहित अन्य के खिलाफ परिवाद पेश किया था। इसमें बताया गया था कि दिग्विजय, प्रशांत पाण्डे जिस एक्सेल शीट को ऑरिजनल एक्सेल शीट बता रहे हैं। वास्तव में वो एक्सेल शीट फर्जी है।
दिग्विजय सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट में एक्सेल शीट के आधार पर जांच एजेंसिंयों को गुमराह कर जांच प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे मे कांग्रेस नेताओं के खिलाफ धोखाधडी, दस्तावेजों में कूट रचना का मुकदमा दर्ज किया जाए। इस पर अदालत ने श्यामला पुलिस को तत्काल एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे।
इधर, दिग्विजय सिंह पर दर्ज FIR वापस लेने की तैयारी:-
वहीं दूसरी ओर एक अन्य मामले मेंविधानसभा सचिवालय ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की फाइल बंद करने की तैयारी कर ली है। इसके लिए कानूनी राय ली जा रही है। पिछली सरकार में इन पर विधानसभा सचिवालय ने अवैध नियुक्तियों का आरोपी मानते हुए एफआइआर दर्ज कराई थी, तभी से यह मामला चल रहा है।
इसलिए हुई थी FIR
कांग्रेस शासनकाल में विधानसभा सचिवालय में नियम विरुद्ध नियुक्तियों के लिए विधानसभा सचिवालय ने तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी, तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और तत्कालीन प्रमुख सचिव एके पयासी के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी।
नियम विरुद्ध नियुक्तियों के मामले में विधानसभा सचिवालय ने 17 अधिकारी-कर्मचारियों को भी आरोपी बनाया था।
जस्टिस शचीन्द्र द्विवेदी की जांच रिपोर्ट के नौ साल बाद हुई इस एफआइआर पर राजनीति भी खूब गरमाई थी।
आरोप लगे कि कांग्रेस ने व्यापमं घोटाला में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित मंत्रियों और सरकार के करीबी लोगों को घेरा तो भाजपा ने दिग्विजय को घेरते हुए कांग्रेस की बोलती बंद करने की कोशिश की है।
आरोप है कि यह नियुक्तियां 1993 से 2003 के बीच हुई हैं। इस दौरान दिग्विजय सिंह राज्य के मुख्यमंत्री रहे। करीब 175 लोगों की नियुक्तियां की गईं। इसमें से कई तो निर्धारित योग्यता भी नहीं रखते थे। कुछ तो एक ही परिवार के लोग शामिल हैं।