वैसे तो इस मुहिम को वर्ष 2016 में शुरू किया गया था। एक साल बाद कुछ छात्रों ने मिलकर एक संस्था का गठन किया, जिसका नाम रखा आरोह यानि बढ़ते कदम। इन युवा छात्रों ने स्लम एरिया के उन बच्चों के हाथ में कापी-कमल थमा दिए, जो कभी गरीबी के कारण बाल मजदूरी करते थे।
होटल में मजदूरी करने और कबाड़ बेचने वाले वे बच्चे आज अंग्रेजी मीडियम स्कूल में न सिर्फ पढ़ाई कर रहे हैं, बल्कि उनका सारा खर्च इस मुहिम से जुड़े छात्र और सहयोगी ही उठा रहे हैं। वह भी अपने पॉकेट मनी के पैसे से, जो इन्हें घर परिवार से मिलते हैं।
200 बच्चों को खुद पढ़ाते हंै छात्र
मुहिम को शुरू करने वाले श्रीनिवास ने बताया कि आरोह के चार प्रोजेक्ट हैं। अक्षर के तहत बाल मजदूरी व स्लम के बच्चों को वालंटियर्स पढ़ाते हैं, जो मैनिट के छात्र हंै। अभी 200 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। पाठशाला के तहत 15 बच्चों का अंग्रेजी मीडियम स्कूल में दाखिला कराया गया है।
दो से 400 के पार होने की कहानी
मुहिम से जुड़ी मैनिट की छात्रा ऋचा सोनी ने बताया कि स्लम एरिया में बच्चों के अभिभावकों को पढ़ाने के लिए मनाने में कई दिन लग जाते थे। कई बार डांट कर भगा दिया जाता था। साथ देने वाले लोग भी कम थे। धीरे-धीरे इस मुहिम के साथ 300 छात्र जुड़ गए।
मजदूरी करता था, आज माडल स्कूल का टॉपर
भेल क्षेत्र के अन्ना नगर झुग्गियों में रहने वाले सुजीत प्रजापति को प्रोजेक्ट पाठशाला के तहत टीटी नगर स्थित मॉडल स्कूल के सातवीं कक्षा में दाखिला कराया गया। बाल मजदूरी करने वाले इस छात्र ने सभी विषयों में अच्छा प्रदर्शन करते हुए 600 में से 525 अंक हासिल किए।