नाटक की शुरुआत गांव के एक दृश्य से होती है, जहां का एक लड़का छागल शहर में पढ़ाई कर रहा है। लड़के के मां-बाप उसकी शादी करना चाहते हैं, लेकिन उसे शहर में एक लड़की से प्रेम है। जब लड़का छागल अपने गांव आता है तो वह शेक्स्पीयर के नाटक हैमलेट के संवाद को याद कर रहा होता है,
लेकिन शहर जाते वक्त नाटक के संवाद गलती से गांव में ही छूट जाते हैं और उसके माता-पिता के हाथ लग जाते हैं। हैमलेट के इस संवादों के कारण नाटक मेंकंफ्यूजन पैदा होता है और इसी कंफ्यूजन के कारण दर्शकों को नाटक के करीब पहुंचने का अवसर भी मिलता है। असल में हैमलेट के ये संवाद आत्महत्या को लेकर है।
यह नोट्स घर पर छूट जाने के कारण घर वाले इसे सुसाइड नोट मान लेते हैं और गांव में हंगामा मच जाता है कि छागल खुदकुशी करने चला गया है। शेक्सपीयर के नाटक हैमलेट के संवाद की ठेठ बुंदेली में अदायगी ने दर्शकों को हंसा-हंसाकर लोट-पोट कर दिया।
1938 में लिखे गए इस नाटक की विशेषता यह है कि इसे स्वांग शैली में बुंदेली बोली में प्रस्तुत किया गया। नाटक अपने आप में हास्य रस से सराबोर रहा।
नाटक में अभिषेक विश्वकर्मा, पीयूषी मालवीय, परवेज खान, अतुल अग्निहोत्री, दीपक किरार, फारूख शेख, उमेश राय, अभिषेक शास्त्री, सदफ खान, प्रज्ञा आर्य आदि कलाकारों ने अभिनय के जौहर दिखाए। बैक स्टेज
नाटक में मंच व्यवस्थापक दीपक किरार, मंच सज्जा सावन मिश्रा, मंच निर्माण अभिषेक शास्त्री, अमन कोरी, अनुभव, गौरव, वेषभूषा प्रिया साहू, रूप सज्जा मुबीना खान और प्रकाश परिकल्पना तनवीर अहमद ने की।