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भोपाल

पलायन प्रदेश बन रहे एमपी पर सकते में सरकार

जवाब तलब : कलेक्टरों से पूछा अब तक क्या कियासभी कलेक्टरों से मांगी पलायन की जानकारी

भोपालJun 19, 2019 / 10:29 pm

anil chaudhary

Chhindwara assembly election-2018

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अरुण तिवारी, भोपाल. रोजगार के अवसर कम होने के कारण मध्यप्रदेश पलायन प्रदेश में बदलता जा रहा है। इससे प्रदेश की नई सरकार सकते में है। सरकार नए सिरे से रोडमैप तैयार कर पलायन से निपटना चाहती है। सरकार ने सभी कलेक्टरों से पूछा है कि आखिर इतने सालों पलायन की स्थिति पर काबू क्यों नहीं पाया जा सका। पलायन रोकने के लिए किए गए कामों का विवरण दें। उनसे पलायन के कारण और रोकने के लिए सुझाव भी मांगे हैं। इसमें लिखा गया है कि रोजगार के कारण लोग पलायन करने को मजबूर न हों।
सबसे खराब हालात बुंदेलखंड इलाके में हैं। यहां कुछ जिलों में तो गांव के गांव खाली हो गए हैं। इलाके की हालत सुधारने के लिए जारी बुंदेलखंड पैकेज भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बुंदेलखंड के अलावा आदिवासी क्षेत्रों और विंध्य की हालत भी खराब है। यहां भी रोजगार के संकट के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है।
– पलायन सकारात्मक है या नकारात्मक
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के तहत आने वाली रोजगार गारंटी परिषद ने सभी कलेक्टरों से आठ बिंदुओं पर जानकारी मांगी है। कलेक्टरों से पूछा गया है कि क्या आपके जिले में पलायन होता है। यदि पलायन होता है तो किस-किस माह में होता है। पलायन करने वाले मजदूरों या परिवारों की अनुमानित संख्या क्या है। पलायन के प्रमुख कारण क्या हैं। जिले में आने वाले हर विकासखंड में पलायन का विवरण क्या है। आपके जिले में पलायन किस क्षेत्र में होता है। आपके जिले में हो रहा पलायन सकारात्मक है या नकारात्मक। पलायन रोकने के लिए अब तक क्या प्रयास किए गए। जिले में रोजगार के अवसर बढ़ाने कार्ययोजना बनाने के लिए क्या सुझाव हैं।
– प्रदेश में पलायन से प्रभावित प्रमुख जिले
बुंदेलखंड के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर और निवाड़ी जिले पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यहां काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता यूसुफ बेग कहते हैं कि इन जिलों के गांव के गांव खाली हो गए हैं। लोग पंजाब, हरियाणा और जम्मू कश्मीर तक रोजगार की तलाश में जा रहे हैं। बुंदेलखंड के जिलों में ऐसा कोई गांव नहीं है, जहां से पलायन नहीं हुआ हो। बेग कहते हैं कि न यहां रोजगार है, न पीने का पानी और अन्य सुविधाएं जिसके कारण पलायन बढ़ता जा रहा है। छोटे बच्चों में कुपोषण के पीछे सबसे बड़ा कारण पलायन है। सरकार ने कभी भी यहां का डाटा इक_ा करने की कोशिश नहीं की और न ही कभी पलायन रोकने के गंभीर प्रयास हुए। शिवपुरी में काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अजय यादव कहते हैं कि यहां पर पलायन 90 फीसदी से ज्यादा है। परिवार के साथ बच्चे भी जाते हैं तो न तो उनकी पढ़ाई हो पाती है और न ही उनका ठीक से पोषण हो पाता है। इसके अलावा झाबुआ, मंडला, शहडोल और सतना जैसे जिलों में भी पलायन के गंभीर हालात हैं।
– पलायन रोकने में कामयाब नहीं हुई मनरेगा
पलायन रोकने के लिए सरकार को मनरेगा से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन पलायन इससे भी नहीं रुका। इस योजना में हुए भ्रष्टाचार से मजदूरों को उनका हक नहीं मिल पाया। मजदूरों के जॉब कार्ड तो बने, लेकिन उनके खाते से पैसा कोई और निकाल ले गया। वहीं, केंद्र से समय से फंड न आ पाने के कारण महीनों मजदूरों को बिना पैसे के रहना पड़ रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय कहते हैं कि मनरेगा की विफलता पलायन का बहुत बड़ा कारण है। यदि इस योजना के संचालन को लेकर सरकारें गंभीर होतीं तो बहुत हद तक पलायन पर रोक लगाई जा सकती थी।
पलायन को लेकर सरकार गंभीर हैं। केंद्र सरकार प्रदेश को मनरेगा की राशि नहीं दे रही है। हम अपने संसाधनों से मजदूरी देने का प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश के माथे से पलायन का कलंक मिटे इसको लेकर सरकार कार्ययोजना तैयार कर रही है।
– कमलेश्वर पटेल, मंत्री पंचायत एवं ग्रामीण विकास

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