भोपाल। अंक मुम्बई और विहान ड्रामा वक्र्स के सहयोग से बुधवार को शहीद भवन में चार दिवसीय दिनेश ठाकुर मेमोरियल थिएटर फेस्टिवल की शुरुआत हुई। जहां पहले दिन सौरभ अनंत के निर्देशन में नाटक ‘तोत्तो चान’ का मंचन हुआ। मेरे अपने, अनुभव, रजनीगंधा जैसी फिल्मों में बतौर एक्टर काम चुके दिनेश ठाकुर को महाराष्ट्र में हिंदी थिएटर को स्थापित करने का श्रेय जाता है।
‘तोत्तो चान’ के सिल्वर जुबली शो के मौके पर पत्रिका प्लस ने जब सौरभ अनंत से पूछा कि आप अपना नाटक कहां बैठकर देखना पसंद करते हैं? तो उन्होंने बताया कि मेरी ख्वाहिश है कि मैं अपने सारे शो सामने बैठकर बतौर दर्शक देखूं क्योंकि मैं वही नाटक बनाता हूं जो मैं देखना चाहता हूं। इस नाटक में चूंकि मैं लाइट डिजायन देखता हूं इसलिए मुझे लाइटिंग पैनल पर बैठना होता है। अभी अंकित और कार्तिक मुझे असिस्ट कर रहे हैं, उम्मीद करता हूं कि शो की गोल्डन जुबली से पहले मैं ऑडियंस में बैठकर अपना नाटक देखूंगा।
2007 में पढ़ी थी किताब, परफेक्शन के लिए 10 साल बाद तैयार किया नाटक इस नाटक का अडॉप्टेशन, डिजायन व डायरेक्शन करने वाले यंग थिएटर डायरेक्टर सौरभ अनंत बताते हैं कि तेत्सुको कुरोयानागी ने वर्ष 1981 में एक जापानी उपन्यास ‘तोत्तो चान’ लिखा। पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा ने इसका हिन्दी अनुवाद किया और वर्ष 1996 में नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने इसे हिन्दी उपन्यास के रूप में पब्लिश किया।
वर्ष 2007 में जब मैं नर्मदा बचाओ आंदोलन के सिलसिले में मेधा पाटकर जी के साथ था उस दौरान रात के वक्त मैंने उनकी लाइब्रेरी में हिन्दी में ‘तोत्तो चान’ पढ़ी। इस दौरान मैंने थिएटर में कदम ही रखा था लेकिन मेरे जेहन में था कि इसे नाटक की शक्ल देना है और करीब 10 साल बाद मार्च 2017 में जाकर हमनें इसका पहला शो किया। बुधवार को शहीद भवन में इसका सिल्वर जुबली (25वां) शो है, विहान ड्रामा वक्र्स का सबसे तेजी से 25 शो पूरे करने वाला यह पहला नाटक है। अब मैं इस नाटक को अंग्रेजी में भी करना चाहता हूं।
इस बार ड्रेस और प्रॉप्स में किया इनोवेशन सौरभ बताते हैं कि 20 से ज्यादा भाषा में अनुवादित यह उपन्यास हर भाषा में बेस्ट सेलर है। कई देशो के एजुकेशन सिस्टम में इसे बाइबिल की तरह लिया जाता है। इतनी महत्वपूण किताब का हिन्दी रूपातंरण और उसकी एक स्क्रिप्ट तैयार करना अपने आप में अहम है।
इस उपन्यास के रूपांतरण ने हिन्दी नाटक को एक नई स्क्रिप्ट दी है। वैसे तो इस नाटक के देश भर में 24 शो हो चुक हैं लेकिन 25वां शो कई मायनों में अहम रहा। इस बार हेडगियर, फिश काइट्स समेत कई प्रॉप्स और कॉस्ट्यूम नए थे। कॉस्ट्यूम की कलर थीम और डिजायन श्वेता केतकर ने की। करीब डेढ़ घंटे के इस नाटक को देखने के लिए टिकट नहीं था लेकिन दर्शकों से 80 रुपए बतौर सहयोग राशि देने का निवेदन किया गया था।
तोमोए स्कूल में प्रकृति के बीच लगती हैं क्लासेज नाटक की कहानी छोटी बच्ची ‘तोत्तो’ की है जो बहुत जिज्ञासाओं और कौतुहल से भरी खुशमिज़ाज लड़की है। पहली कक्षा में पढऩे वाली इस बच्ची को स्कूल से इसलिए निकाल दिया जाता है क्योंकि वह कक्षा में बैठकर खिड़की से बाहर झांकती है, चिडिय़ा से बातें करती है।
उसकी मां को फिर एक नया स्कूल तोमोए मिलता है । जहां हेडमास्टर बच्चो के मन को समझते हैं, बिना डांटे-मारे उनकी बात सुनते हैं उन्हें समझाते हैं। जहां पढ़ाई स्कूल के अंदर नहीं बल्कि प्रकृति के बीच होती है। उसी समय 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव सारे जापान के साथ-साथ ‘तोमोए’ पर भी गहराता है। बमबारी में ‘तोमोए’ भी जलकर ख़ाक हो जाता है। तेत्सुको कुरोयानागी का अपने शिक्षक कोबायाशी के लिए कथन है ‘जिस समय तोमोए जल रहा था तब भी वे एक बेहतर स्कूल की कल्पना कर रहे थे’।
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