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भोपाल

वोटर को भांपना बहुत कठिन, मनोवैज्ञानिक युद्ध की तरह लड़े जा रहे हैं चुनाव

सप्रे संग्रहालय में ‘मीडिया और मतदाता’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

भोपालOct 13, 2018 / 09:34 am

hitesh sharma

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आज मनोवैज्ञानिक युद्ध की तरह लड़े जा रहे हैं चुनाव

भोपाल। आज चुनाव मनोवैज्ञानिक युद्ध की तरह लड़े जा रहे हैं। जिस तरह युद्ध जीतने के लिए छद्म प्रयास किए जाते थे उसी तरह भ्रमपूर्ण वातावरण बनाकर मतदाता को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित किया जा रहा है।

मीडिया की भूमिका सत्यान्वेषक की हो सकती है, पोल या सर्वे के जरिए मतदाता को प्रभावित करने के प्रयास नहीं किए जाने चाहिए। सोशल मीडिया पर वोटर को भ्रमित करने वाली जानकारी जरूर परोसी जा रही है लेकिन वोटर को भांपना बहुत कठिन है।

कभी चुनावों में धनबल और बाहुबल की भूमिका होती थी लेकिन धीरे-धीरे अब बाहुबल बेअसर होता दिख रहा है। यह निष्कर्ष हैं माधवराव सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान में आज संपन्न हुई विचार गोष्ठी में आए विचारों का।

यहां ‘मीडिया और मतदाता ‘ विषय पर शहर के प्रबुद्धजनों द्वारा विचार-विनिमय किया गया। जिसमें प्रशासनिक क्षेत्र,पत्रकारिता,साहित्य तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने हिस्सेदारी की।

अब जेल में रहकर चुनाव नहीं जीता जा सकता
सेवा निवृत्त पुलिस अधिकारी अरुण गुर्टू ने भी एक सरकारी अधिकारी के रूप में किए कार्यों के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि आज स्थितियां बहुत बदल गईं हैं। किसी समय में धनबल और बाहुबल का चुनावों में बड़ा रोल होता था लेकिन अब बाहुबल उतना असरदार नहीं रहा। अब जेल में रहकर चुनाव नहीं जीता जा सकता। उन्होंने कहा कि मीडिया चुनाव लड़ रहे दोनों पक्षों की स्थिति समाज के सामने लाता है यही उसकी ताकत है। मीडिया का रोल बहुत महत्वपूर्ण है।

हर राज्य की चुनावी परिस्थितियां अलग
चंद्रकांत नायडु ने भी अपने ऐसे ही अनुभवों के आधार पर कहा कि हर राज्य की चुनावी परिस्थतियां अलग होती हैं और पत्रकारों को उस हिसाब से स्वयं को ढालना होता है।

मीडिया पर प्रेशर तो आते रहते हैं और आएंगे भी उनके बीच से ही अपना दायित्व निभाते हुए वोटर के सामने सही स्थिति रखनी चाहिए ताकि वह अपना मत सही व्यक्ति को दे सके।

वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र हरदेनिया का कहना था कि हर चुनावों में बुनियादी फर्क आते हैं। आज करीब 10 करोड़ नए मतदाता आये हैं, सोशल मीडिया की चपेट में सबसे ज्यादा यही वर्ग है।

सोशल मीडिया पर बेसिर-पैर की बातें प्रसारित कर भ्रम का वातावरण बनाकर मनोवैज्ञानिक दबाव डाला जा रहा है। आज चुनाव भी मनोवैज्ञानिक युद्ध की तरह लड़े जा रहे हैं।

चुनाव में अब बाहुबल कम हुआ है
चर्चा में हिस्सा लेते हुए प्रो. रत्नेश ने भी माना कि आज बाहुबल कम हुआ। जगदीश चंद्रा ने प्रत्याशी के बारे में सही-सही जानकारी वोटर के सामने लाना मीडिया का दायित्व बतलाया। साहित्यकार रामवल्लभ आचार्य ने कहा कि आज जनता से जुड़े मुद्दों को स्पष्ट नहीं किया जा रहा है। इससे वह भ्रमित है।
आरंभ में सप्रे संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि आयोजन के पीछे हमारा उद्देश्य है कि मीडिया मतदाता को जाग्रत करने के साथ ही सही दिशा में प्रेरित करने में भूमिका निभाए। गोष्ठी का संचालन पत्रकार राकेश दीक्षित ने किया।

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