ये आदिवासी महासंघ सिर्फ अपने अधिकारों की बात करेगा। राजनीतिक दलों पर ये संगठन प्रेशर ग्रुप यानी दबाव की राजनीति करेगा। इन लोगों को लगता है कि राजनीतिक और सामाजिक रुप से आदिवासियों की बड़ी दखल होने के बाद भी उनके मुद्दों को बहुत हल्के से लिया जाता है। कुछ दिनों पहले हुई बैठक में आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय शाह, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अध्यक्ष मनमोहन शाह बट्टी और भाजपा के पूर्व विधायक कमल मर्सकोले समेत कुछ अन्य नेता भी शामिल हुए।
इसके अलावा आदिवासी महासंघ गठन के मुद्दे पर गांधी भवन में हुए कार्यक्रम में पूर्व सांसद कांतिलाल भूरिया, विधायक हीरा अलावा, अजय शाह और बट्टी समेत अन्य आदिवासी नेता शािमल हुए। इस महासंघ का मुखिया किसी पार्टी से नहीं होगा। इस महासंघ में रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस को भी शामिल किया जा रहा है। ये नेता अपने-अपने दल में आदिवासियों के मुद्दों को उठाएंगे।
प्रदेश में आदिवासियों की इतनी हिस्सेदारी :
प्रदेश में आदिवासी वर्ग की बड़ी हिस्सेदारी है। प्रदेश में २१ फीसदी आदिवासियों की आबादी है। विधानसभा की ४७ सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। जबकि लोकसभा की ६ सीटों को आदिवासियों के लिए आरक्षित किया गया है। इन नेताओं को लगता है कि बड़ी हिस्सेदारी के बाद भी समाज बंटा हुआ है। जब तक एकजुटता नहीं होगी तब तक दबाव नहीं बनाया जा सकता। चुनाव के समय आदिवासियों को वोट बैंक माना जाता है लेकिन उनके प्रमुख मुद्दे जस के तस रहते हैं,उन पर कोई काम नहीं होता।
इन मुद्दों को उठाएगा महासंघ :
– सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के साढ़े तीन लाख आदिवासियों के पट्टे खारिज कर दिए। ये नौबत इसलिए आई क्योंकि आदिवासियों के वन अधिकारों के मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। केंद्र सरकार के वनाधिकार कानून लागू करने के बाद भी आदिवासी पट्टों के लिए आज तक भटक रहे हैं।
– पांचवीं अनुसूची को लागू करने में बहुत अड़चन डाली जा रही हैं, इसको लागू होना चाहिए।
– आदिवासियों का भी धार्मिक कोड बनना चाहिए। अगली जनगणना में धार्मिक आधार पर आदिवासी धर्म को शामिल किया जाना चाहिए।
– पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। कांग्रेस ने मंत्रिमंडल में चार आदिवासी मंत्रियों को लिया है और उनको बड़े विभाग दिया हैं,जबकि भाजपा सरकार में ३३ विधायक होने के बाद भी तीन आदिवासी मंत्री थे जिनके पास हल्के विभाग थे।आदिम जाति कल्याण मंत्रालय तक आदिवासी मंत्री को नहीं दिया गया था।
जयस कर चुका है इस तरह की कोशिश :
आदिवासी मुद्दों को उठाने के लिए प्रदेश में जय आदिवासी संंगठन यानी जयस बन चुका है। इस संगठन में समाज के पढ़े-लिखे और नौकरीपेशा युवा शामिल हैं। इस संगठन को प्रदेश के आदिवासी जिलों में अच्छा समर्थन भी मिला। यही कारण रहा कि जयस के अध्यक्ष डॉ हीरा अलावा को कांग्रेस ने टिकट देकर जयस का समर्थन हासिल कर लिया। हीरा अलावा कहते हैं कि वे आदिवासी मुद्दों को उठाने का काम करते रहेंगे, इन मुद्दों की कीमत पर वे कभी समझौता नहीं करेंगे।
– आदिवासी वर्ग को राजनीतिक पार्टियों ने हल्के में लिया है क्योंकि उनमें एकजुटता या एकरुपता नहीं रही। अब हम चाहते हैं कि सभी दलों के आदिवासी नेता मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करें जो सिर्फ उनके मुद्दों की बात करे और अपनी-अपनी पार्टियों में प्रेशर ग्रुप का काम करे।
– अजय शाह प्रदेश अध्यक्ष,आदिवासी कांग्रेस-