दरअसल हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि यदि आपके पास कार है तो सतर्क हो जाएं कि कहीं आपकी कार के नंबर पर कहीं दूसरी गाड़ी तो नहीं चल रही। दरअसल, बीते दिनों शहर में ऐसे कई मामले सामने आए, जिनमें एक ही नंबर की दो कारें सड़क पर दौड़ती मिलीं।
पुलिस के पास भी ऐसी कई शिकायतें पहुंच रही हैं। कई बार फर्जी नंबरों पर चल रहे वाहनों का इस्तेमल अपराधों में भी किया गया। पत्रिका ने जब इस मामले की पड़ताल की तो पता चला कि आखिर कैसे इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जाता है।
आरटीओ में एक ही चेचिस और इंजन नंबर पर दो सेल लेटर जारी कर दिए जाते हैं। एक गाड़ी को नंबर मिल जाता है, दूसरी बिना रजिस्ट्रेशन पर चलती रहती है।
इन वाहनों का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों में होता है। हाल ही में इंदौर में ऐसा मामला सामने आया था, जिसमें मर्डर के दौरान उपयोग की गई गाड़ी का नंबर राजधानी के एक शख्स के नाम पर रजिस्टर्ड था।
10 लाख रुपए से कम के वाहन की कुल कीमत का सात फीसदी टैक्स देना होता है। एक करोड़ से ज्यादा की कीमत पर यही टैक्स 17 फीसदी हो जाता है।
ऐसे किया जाता है फर्जीवाडा़
कई प्रतिष्ठान एक साथ दो या अधिक वाहन खरीदते हैं। वे एक गाड़ी रजिस्टर्ड करवाकर वही नंबर सभी गाडिय़ों में लिख लेते हैं। अलग-अलग जगहों पर चलने के कारण इन वाहनों को पकडऩा मुश्किल होता है।
2005 से पहले के रजिस्टर्ड वाहनों के साथ अक्सर समस्या आती है। पहले मैन्युअल रजिस्ट्रेशन होता था। उस समय की सिरीज के कई नंबर अपडेट नहीं हो सके हैं और दूसरी गाडिय़ों को आवंटित हो जाते हैं।
आरटीओ में गाडिय़ों के रजिस्ट्रेशन के वक्त सिस्टम में फीड पुराने नंबरों को फिर से जारी कर देते हैं। ऐसे में मंहगी गाडिय़ों का रजिस्ट्रेशन कम दाम वाली गाड़ी के रूप में होता है, जिससे टैक्स की चोरी हो सके।
परिवहन विभाग ऐसे फर्जीवाड़े को रोकने के बजाय चालानी कार्रवाई करना पसंद करता है। आरटीओ के अधिकारी इस तरह की गड़बडिय़ों को मानते ही नहीं हैं। उनका तर्क है कि विभाग में काम ऑनलाइन होता है। ऐसे में गड़बड़ी नहीं हो सकती। वह यह भी कहते हैं कि इस तरह की गड़बड़ी डीलर स्तर पर संभव है।
2005 के पहले का सारा डाटा कम्प्यूटराइज्ड नहीं है। उन नंबरों में गड़बड़ी हो सकती है।
– डॉ. शैलेंद्र श्रीवास्तव, आयुक्त, परिवहन