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सिधिया खेमे में हलचल
ज्योतिरादित्य सिंधिया के 10 जून के दौरे को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरु हो गई हैं। एक तरफ सिंधिया के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शआमिल होने की खबरें तो दूसरी तरफ सिंधिया खेमे की बीजेपी के संगठन में नई जगह तलाशने के चलते इस दौरे को अहम माना जा रहा है। हालांकि सिंधिया के दौरे को लेकर अभीतक आधिकारिक कार्यक्रम घोषित नहीं किया गया है। बताया जा रहा है कि सिंधिया एक दिन भोपाल और उसके बाद ग्वालियर रहेंगे। दिल्ली में बीजेपी हाईकमान की बैठकों के बाद उत्तर प्रदेश में बदलाव को लेकर खबरें आ रही है। इसी बीच मध्य प्रदेश में भी संगठन के स्तर पर बदलाव किया जाना है। वही कांग्रेस द्वारा सिंधिया को बार बार मंत्री पद ना दिए जाने को लेकर भी पार्टी के पास जबाब नहीं है।
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नहीं है सत्ता की जिम्मेदारी
मध्यप्रदेश भाजपा का मौजूदा गढ़ 2003 में फायर ब्रांड नेता उमा भारती की जबरदस्त जीत की नींव पर टिका है। बीते एक दशक से ज्यादा समय से उमा प्रदेश की सीधी सियासत से बाहर हैं। गंगा के लिए काम के अलावा उनके पास कोई सियासी या सत्ता की जिम्मेदारी नहीं है। बार-बार 2024 का चुनाव लडऩे की इच्छा जताने के बावजूद अब तक उनके लिए किसी ने कोई कदम नहीं उठाया। पर ये तय है, उमा चुनाव लड़ती हैं तो सूबे की सियासत पर असर होगा। उमा की सीट बुंदेलखंड से होगी, पर मप्र या उप्र ये भी बड़ा सवाल है। फि़लहाल वे 2024 के चुनाव के लिए संतुलन की राजनीति पर कदम बढ़ा रही हैं। फिलहाल उमा भारती हरिद्वार-केदारनाथ में हैं।
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प्रदेश में साध रहे संतुलन
पश्चिम बंगाल में हार के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने मध्य प्रदेश में प्रेशर पॉलिटिक्स की राह पकड़ी है। लंबे समय से कैलाश प्रदेश की सीधी सियासत से बाहर हैं। जब-तब अपना सियासी वजन दिखाने की वे कोशिश करते रहे हैं, पर प्रदेश में कहीं भी उनकी सुनी नहीं जाती। वापस आने की छटपटाहट से कैलाश दिग्गज नेताओं के दर-दर फिर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर संगठन, संघ और केंद्रीय मंत्रियों के दरवाजे तक हो आए। मंशा है बिना कहे प्रेशर पॉलिटिक्स का असर हो और प्रदेश व इंदौर में उनकी बात का वजन बढ़े, पर अभी तक इसका असर नहीं हुआ। अभी तक संगठन इस पर राजी नहीं है। प्रदेश की सियासत के लिए कैलाश को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।