नाटक की शुरुआत एक गावं से होती है, जहां लालचंद का आतंक होता है। इसकी नजर गांव की बहु-बेटियों पर होती है। गांव के मास्टर की बहन के साथ लालचंद दुष्कर्म करने के बाद उसे जलाकर मार देता है। मास्टर थाने में रिपोर्ट दर्ज करने जाता है, लेकिन थाना प्रभारी सबूत न होने के कारण रिपोर्ट दर्ज नहीं करता और मास्टर को समझाता है कि क्यों झगड़ा मोल लेते हो कुछ ले देकर मामला रफा-दफा करों लेकिन मास्टर लालचंद के खिलाफ लड़ाई जारी रखता है और बोलता रहता है कि हम लड़ेंगे साथी।
वहीं इस बीच लालचंद गांव के एक व्यक्ति लठैत की पत्नी के साथ दुराचार करता है, तो लठैत की पत्नी और उसकी सास गांव के ही एक पेड़ में फंदा लगाकर फांसी पर झूल जाती है। नाटक की अंतिम कड़ी में दिखाया की कुछ दिन बाद मास्टर के सपने में वह लड़की आती है, और कहती है कि तुम्हारी आत्मा को मालूम है कि कुछ हुआ था लेकिन तुम कुछ नहीं कर सकें। वहीं एक लड़की गांव के बाबा के पास जाती है और कहती है कि हम सब मिलकर लड़ेंगे। नाटक में नाटक में अंकेश शर्मा, मेघा ठाकुर, शुवराज गौरव सक्सेना, रेखा ठाकुर, प्रथम भार्गव, ईशान गुप्ता, समक्ष जैन, ओम सिंह जादौन, हर्ष राव, भगत सिंह, राहूल खत्री आदि कलाकारों ने अभिनय का जौहर दिखाया।