इन तस्वीरों को देखिए। मध्यप्रदेश के किसी भी कस्बे या गांव में चले जाइए, वहां यूरिया के लिए भटकते और परेशान होते किसान आपको मिल जाएंगे। तमाम दावों के बावजूद इस वक्त मध्यप्रदेश यूरिया संकट की चपेट में है। आमलोगों को इससे भले कोई वास्ता न हो लेकिन इसी आम आदमी का पेट भरने वाला अन्नदाता एक-एक बोरी यूरिया के लिए जान जोखिम में डाल रहा है। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि जब रात-रात भर लाइन में खड़े रहने के बावजूद उन्हें यूरिया की बोरी नहीं मिल पाई तो मजबूरन इस किसान को लुटेरा बनना पड़ रहा है।
और इन तस्वीरों को देखिए किस तरह हताश किसान यूरिया को देख उस पर टूट पड़ा। आप कह सकते हैं कि इस ट्रक को लूट लिया गया। इतना ही नहीं यूरिया खाद की चोरी भी हो रही है। सरकारों की निष्क्रियता और अदूरदर्शिता का खामियाजा किसान को भुगतना पड़ रहा है और हालात इतने खराब हैं कि किसान ही किसान का दुश्मन बन बैठा है।
राज्य सरकार 80 फीसदी यूरिया को-ऑपरेटिव सोसाइटी के जरिए बंटवा रही है
पहले को-ऑपरेटिव और बाजार मिलकर 50-50 फीसदी यूरिया बेच रहे थे
45 किलो वाली एक यूरिया बोरी की लागत 266 रुपये है
ब्लैक में यही यूरिया 600 से 800 रु बोरी तक बिक रही है
गेंहू की अच्छी फसल के लिए यूरिया का इस्तेमाल करना पड़ता है
गेहूं का रकबा अचानक बढ़ने से यूरिया की भी मांग बढ़ गई
प्रदेश में गेहूं के रकबे में 8.5 फीसदी इजाफा हुआ
किसानों ने दलहनी फसलों की बजाय गेंहू लगाया
सरकार इस संकट को भांपने में नाकाम रही
वहीं केन्द्र सरकार का कहना है कि वो जरूरत के हिसाब से यूरिया आपूर्ति करता है। कृषि मंत्रालय के सचिव चाबिलेंद्र राउल कहते हैं कि हमसे अतिरिक्त मांग नहीं की गई है। फिलहाल तो एमपी में बीजेपी कमलनाथ सरकार पर जमाखोरों के साथ सांठगांठ का आरोप लगा रही है।
इस राजनीति से दूर किसान की आंखें केवल यूरिया खोज रही है। मंगलवार को सागर, खंडवा, उज्जैन, विदिशा, रायसेन, सीहोर, अशोक नगर और गुना में किसानों ने सड़क पर उतर कर विरोध दर्ज कराया। आखिर कब तक किसान दिनभर और रातभर खाद की आस में दुकानों के बाहर खड़ा रहे। छोटे जमाखोरों पर कार्रवाई हो रही है लेकिन पर्याप्त मात्रा में यूरिया की व्यवस्था जरुरी है। वरना गेंहू का उत्पादन कम हो जाएगा और किसान फिर नए भंवर में फंस जाएगा।