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निगम में प्रभारियों के भरोसे जनता की प्यास बुझाने का जिम्मा

इसलिए है संकट : राजधानी में पानी सप्लाई व्यवस्था में लगाए गए इंजीनियरों के अनुभव को लेकर उठ रहे सवाल

भोपालJan 24, 2019 / 01:50 am

Bharat pandey

Water crisis

Water crisis

भोपाल। राजधानी की करीब 21 लाख लोगों की जलापूर्ति व्यवस्था प्रभार पर चल रही है। स्थिति ये हैं कि कार्यपालन यंत्री स्तर के इंजीनियर को इंजीनियर इन चीफ तो सहायक यंत्री स्तर के इंजीनियर को कार्यपालन यंत्री का प्रभार दिया हुआ है। जलापूर्ति व्यवस्था में अनुभव और पद दोनों कम होने का खामियाजा शहरवासियों को जलसंकट के तौर पर हो रहा है।

अनुभव और पद में कमतर प्रभारी शहर की जलापूर्ति पर खुद के स्तर पर पुख्ता प्लान नहीं बना पा रहे। उच्चाधिकारियों में अपर आयुक्त से लेकर आयुक्त तक नॉन टेक्निकल है, जिससे समय पर निर्णय नहीं हो रहे और मोटी राशि खर्च होने के बावजूद शहर के कई क्षेत्रों में पानी की दिक्कत दूर नहीं हो रही।

 

इनके हाथ में शहर का पानी
एआर पंवार- छह साल से प्रभारी चीफ इंजीनियर (जलकार्य) हैं। इनका मूल पद कार्यपालन यंत्री का है। इनके साथ ही जेडी खान और एके पाठ्या को कार्यपालन स्तर का काम सुपुर्द कर रखा है, जबकि ये सहायक यंत्री है। अपर आयुक्त (जलकार्य) एमपी सिंह हैड्ड, लेकिन जलापूर्ति से संबंधित तकनीकी समझ नहीं होने से पंवार और इनकी टीम पर निर्भर हैड्ड।

एेसे समझे प्रभारी पर जिम्मेदारी से दिक्कत
– कोलार और नर्मदा से काफी पानी लेने के बावजूद उसे बड़ा तालाब की लाइन में ठीक से आगे नहंी बढ़ाया जा रहा है। ठेका कंपनियों की मनमर्जी से बिछी लाइनें अब दिक्कत दे रही है।
– नए जलस्त्रोत होने और यहां से पानी लेने पर करोड़ों खर्च करने के बावजूद बड़ा तालाब पर निर्भरता को कम नहीं कर पाए
– निगमायुक्त या नगरीय प्रशासन के अफसरों को तकनीकी आंकड़ों के आधार पर ठोस जानकारी देकर जलापूर्ति की स्थिति समझा नहीं पा रहे।

23 करोड़ की जरूरत, 28 करोड़ मिल रहा, फिर भी दिक्कत
निगम के ही आंकड़ों के अनुसार शहर की 20 लाख की आबादी को प्रतिव्यक्ति 125 लीटर रोजाना पानी के आधार पर 23 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है। जलापूर्ति के चार स्त्रोतों से 28 करोड़ लीटर पानी प्राप्त होता है, बावजूद इसके जलसंकट है।

ये करें तो मिले राहत
– शहर को मिल रहे पानी की मॉनीटरिंग कड़ी करें
– जिन क्षेत्रों में ज्यादा पानी जा रहा वहां से कटौती कर कम जलापूर्ति वाले क्षेत्रों में भेजे
– लीकेज को रोकें, ताकि रोजाना पांच करोड़ लीटर पानी की बर्बादी रूके
– कोलार, नर्मदा, बड़ा तालाब और केरवा के प्राप्त पानी को समग्रतौर पर पूरे शहर में समान बंटवारे की
योजना पर काम हो
शटडाउन में बड़ा तालाब से खींचते हैं 33 एमजीडी पानी
नगर निगम के जलकार्य विभाग के जिम्मेदार इंजीनियर बड़ा तालाब से 24 एमजीडी पानी लेने का दावा करते हो, लेकिन असल में माह में कई बार यहां से 33 एमजीडी पानी खींच लिया जाता है। नर्मदा और कोलार प्रोजेक्ट में लीकेज सुधारने के नाम पर आए दिन शटडाउन लिए जाते हैं। इस दौरान ही तालाब पर लगे 11 प्लांट को पानी के लिए एेसा किया जाता है।
तालाब में पानी कम, फिर भी 14 एमजीडी के नए प्लांट बना दिए
बड़ा तालाब से जलापूर्ति सीमित करने की बजाय निगम इससे अतिरिक्त 14 एमजीडी पानी खींचने के प्लांट तैयार कर चुका है। भौंरी को जलापूर्ति का दो एमजीडी का प्लांट बड़ा तालाब किनारे तैयार कर लिया गया है। इसके अतिरिक्त मनुआभान की टेकरी के पास 12 एमजीडी का नया प्लांट तैयार किया है। इनके शुरू होते ही तालाब से 47 एमजीडी पानी खींचने की क्षमता हो जाएगी।

ये सही है जलापूर्ति, सिविल और इस तरह के अन्य तकनीकी शाखाओं का जिम्मा एक्सपर्ट्स के पास ही हो। इसके लिए मैं अपने स्तर पर पहल करूंगा।

– आलोक शर्मा, महापौर

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