शाकाहारी जीवों के आने का कारण शाकाहारी वन्यजीवों को शहर से सटी कॉलोनियों में आने के दो बड़े कारण माने जा रहे हैं। पहला कारण जंगल में पानी की पर्याप्त व्यवस्था न होना है। बरसात और सर्दियों में भरे रहने वाले छोटे तालाब, पोखर, गड्ढे, नालियां गर्मियों में सूख जाते हैं। जब जंगल में जानवरों को पानी नहीं मिलता तो वे परेशान होकर शहर की ओर भागते हैं। दूसरे खास वजह जंगलों में पर्याप्त चारे का न होना है। गर्मियों में घास सूख जाती है और झाडिय़ों के पत्ते भी झड़ जाते हैं। जंगल में चारे का काफी अभाव हो जाता है, जबकि शहर के आसपास खेत, पार्क आदि हरे-भरे रहते हैं। इनसे जानवर आकर्षित होकर शहर की तरफ रुख करते हैं।
गर्मी के मौसम में जंगल में आग की घटनाए भी अधिक होती हैं। इस सीजन में जंगल की घास और वनस्पतियां सूख जाती हैं और जरा सी चिनगारी भयानक रूप धारण कर लेती है, जिससे पेड़-पौध झुलस जाते हैं। इससे जानवरों के लिए छायादार स्थान नहीं बचता। साथ ही जो कुछ झाडिय़ां आदि हरी रह जाती हैं, वे भी जलने से बचा हुआ चारा भी नष्ट हो जाता है।
– आंवला बीट में बोरी बंधान पक्का सॉसर – टैंकर से पानी आपूर्ति
– आंवला बीट में पक्का सॉसर – बिजली की मोटर से पानी आपूर्ति
– आंवला बीट के दोनों कच्चे तालाबों में अभी पानी है।
– मेंडोरा बीट में पक्का सॉसर – बिजली की मोटर से पानी आपूर्ति
– मेंडोरा बीट कच्चा तालाब – पूरी तरह सूखा पड़ा
– नीमवाली गेट पर सॉसर – निर्माण कार्य चल रहा
– भानपुर सर्किल में टाइगर गेट पक्का सॉसर – टैंकर से आपूर्ति
– भानपुर (जामुनखोह) कच्चा सॉसर – सोलर पम्प से आपूर्ति
– समसपुरा (छपरा वाली) कच्चा सॉसर – टैंकर से आपूर्ति
– चीचली बीट की सॉसर – सोलर पम्प से पानी की आपूर्ति
– पड़रिया में चार पक्की सॉसर – सभी में पानी की आपूर्ति
– सूखी सेवनिया में 3-4 पक्की सॉसर- टैंकर से पानी आपूर्ति
भोपाल वनमंडल की समरधा रेंज में 18 पक्के वाटर सॉसर बनाए गए, जबकि बैरसिया में 22 कच्चे सॉसर की खुदाई कराई गई। एक पक्के सॉसर के निर्माण में लगभग 60 हजार रुपए और कच्चे सॉसर की खुदाई में 25 हजार रुपए का खर्च आया। इनमें दो सॉसर सोलर एनर्जी संचालित पम्प से भरे जाते हैं, जबकि अन्य सॉसर टैंकर से भरे जाते हैं। दो सॉसर में बिजली मोटर से सीधा पानी पहुंच जाता है। पक्के सॉसर को सात दिनों में भरना होता है।
भोपाल वनमंडल का जंगल 600 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। इतने बड़े क्षेत्र में वन्यजीव-जंतुओं की प्यास बुझाने और हरा चारा बनाए रखने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। जानकारों के अनुसार वनमंडल में कम से कम तीन टैंकर सॉसर में पानी डालने के लिए चाहिए, लेकिन अभी तक एक ही टैंकर से काम चलाया जा रहा है। पिछली बार शासन से सीसीएफ डॉ. एसपी तिवारी ने टैंकर बढ़ाए जाने की मांग भी की थी, लेकिन अभी तक टैंकर नहीं मिल सके हैं। लोकसभा चुनाव के चलते इस बार की गर्मी में तो कोई राहत की संभावना भी नजर नहीं आ रही।
जहां एक ओर वन अमला जंगली जीव-जंतुओं और जानवरों के लिए पानी के इंतजाम में हलकान हुए जा रहे हैं, वहीं बैरसिया रेंज में प्रकृति ने खुद ही पानी की व्यवस्था कर दी है। बैरसिया के जंगल में हर 3-4 किलोमीटर की दूरी पर कम से कम एक कच्ची सॉसर है, जिसे वन अधिकारियों ने बनवाया था। इन कच्चे सॉसर में अब पानी अपने आप पानी आ गया है, जिससे वन्यजीवों की प्यास बुझ रही है। भोपाल शहर से सटे वनक्षेत्र से बैरसिया के जंगल में पानी की स्थिति अच्छी है।
उपलब्ध संसाधनों से वन्यजीवों के लिए पानी का इंतजाम किया जा रहा है। सात दिन में एक बार सॉसर में पानी भरा जाता है। समय पर सॉसर की सफाई भी कराई जाती है। गर्मी में कुछ प्राकृतिक सॉसर में पानी रहता और कुछ में सूख जाता है।
– हरिशंकर मिश्रा, डीएफओ