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भोपाल

सिंधिया की एक शर्त के कारण नहीं हुई दिग्विजय के साथ बैठक, मार्च का महीना कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल !

ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह की मुलाकात केवल 2 मिनट की रही।

भोपालFeb 25, 2020 / 01:12 pm

Pawan Tiwari

सिंधिया की एक शर्त के कारण नहीं हुई दिग्विजय के साथ बैठक, मार्च का महीना कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल !

सिंधिया की एक शर्त के कारण नहीं हुई दिग्विजय के साथ बैठक, मार्च का महीना कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल !

भोपाल. मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर से गर्मियां बढ़ गई हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह की सड़क पर हुई मुलाकात के कई सियासी मायने सामने आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की एक शर्त के कारण बंद कमरे में होने वाली मीटिंग केवल मुलाकात तक सीमित रह गई। वहीं, दूसरी तरफ निर्वाचन आयोग द्वारा राज्यसभा चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करने के साथ ही कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। मध्यप्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होना है। मार्च का महीना कांग्रेस के लिए मुश्किल महीना हो सकता है।
सिंधिया की एक शर्त के कारण नहीं हुई दिग्विजय के साथ बैठक, मार्च का महीना कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल !
क्यों नहीं हुई दिग्विजय और सिंधिया के बीच बैठक?
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना के सर्किट हाउस में प्रस्तावित आधे घंटे की मुलाकात सड़क पर चंद मिनटों में खत्म हो गई। दोनों नेता हाथ में माला लेकर गाड़ी से उतरे और एक दूसरे को माला पहनाई और हंसते हुए गले लगे। सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच केवल 2 मिनट की बातचीत हुई और दोनों अपने-अपने रास्ते पर चल दिए। सूत्रों का कहना है कि दिग्विजिय औऱ सिंधिया के बीच मुलाकात नहीं होने के पीछे सिंधिया की एक शर्त बताई जा रही है।
सूत्रों का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि दिग्विजय सिंह के साथ मुख्यमंत्री कमलनाथ भी बैठें तभी चर्चा संभव है। यहीं कारण है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने टूर प्लान में मुलाकात के वक्त को जनसंपर्क लिखा था जबकि दिग्विजय सिंह ने अपने टूर प्रोग्राम में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मीटिंग का उल्लेख किया था।
सिंधिया की एक शर्त के कारण नहीं हुई दिग्विजय के साथ बैठक, मार्च का महीना कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल !
मीडिया से भी बचते रहे सिंधिया?
ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश दौरे पर भोपाल पहुंचे तो वो दिग्विजय सिंह से मुलाकात के सवाल पर बचते नजर आए उन्होंने कहा उनसे हमेशा मुलाकात होती रहती है। वहीं, अशोकनगर में दिग्विजय सिंह ने कहा था कि महाराज गुना आ रहे हैं तो हम उनसे मुलाकात करेंगे। सिंधिया और दिग्विजय की सड़क पर सिर्फ दो मिनट की बातचीत के बाद नया सवाल खड़ा हुआ है और इसे ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है।
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कांग्रेस के लिए क्यों मुश्किल है मार्च का महीना
केन्द्रीय चुनाव आयोग ने राज्यसभा चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। 26 मार्च को राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। ऐसे में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल है कि राज्यसभा का टिकट किसे दिया जाए। मध्यप्रदेश में राज्य सभा के लिए कई दावेदार हैं। जिन सांसदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है उसमें मौजूदा सांसद दिग्विजय सिंह भी कांग्रेस के दावेदारों की सूची में शामिल हैं। मध्यप्रदेश में इस बार कांग्रेस की सरकार है ऐसे में तीन में से दो सीटें कांग्रेस को मिलने की संभावना है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और अजय सिंह राज्यसभा के प्रबल दावेदार हैं। वहीं, अटकलें यह भी हैं कि एक नेता मध्यप्रदेश का हो सकता है जबकि दूसरा नाम कोई बाहर का नेता हो सकता है।
राज्यसभा के लिए हो रही गुटबाजी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। सूत्रों का कहना है कि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच मुलाकात इसी वजह से होने वाली थी कि क्योंकि खुद दिग्विजय सिंह अपने राज्यसभा जाने को लेकर आश्वत नहीं हैं। इस बैठक में राज्यसभा और प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चा होनी थी लेकिन चर्चा नहीं हो पाई। कहा जा रहा था कि दिग्विजय और सिंधिया के बीच बैठक में प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा को लेकर एक-एक नेता के नाम पर सहमति बन सकती है।
कौन सी सीटें हो रही हैं खाली
मध्यप्रदेश में राज्यसभा की 11 सीटें हैं। 3 सीटों का कार्यकाल 2020 में पूरा हो रहा है। जिन सांसदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है उनमें कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, भाजपा के प्रभात झा और पूर्व मंत्री सत्य नारायण जाटिया का है। भाजपा के खाते में एक और कांग्रेस के खाते में एक सीट जाएगी लेकिन तीसरी सीट को लेकर पेंच फंस सकता है। जहां भाजपा को मुश्किलों का सामना कर पड़ सकता है जबकि कांग्रेस के पास संख्या बल है।
क्या है राज्यसभा पहुंचने का गणित?
राज्यसभा सदस्यों के चुनाव में एक प्रत्याशी को जीतने के लिए कम से कम 58 विधायकों के वोटों की जरूरत है। 2018 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। जबकि कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। भाजपा के पास 107 विधायक हैं। सपा, बसपा और निर्दलीय के सहारे कमलनाथ की सरकार चल रही है। ऐसे में भाजपा के पास अपने दो नेताओं को राज्यसभा भेजने के लिए पर्याप्त संख्या बल नहीं है।

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