पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना के सर्किट हाउस में प्रस्तावित आधे घंटे की मुलाकात सड़क पर चंद मिनटों में खत्म हो गई। दोनों नेता हाथ में माला लेकर गाड़ी से उतरे और एक दूसरे को माला पहनाई और हंसते हुए गले लगे। सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच केवल 2 मिनट की बातचीत हुई और दोनों अपने-अपने रास्ते पर चल दिए। सूत्रों का कहना है कि दिग्विजिय औऱ सिंधिया के बीच मुलाकात नहीं होने के पीछे सिंधिया की एक शर्त बताई जा रही है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश दौरे पर भोपाल पहुंचे तो वो दिग्विजय सिंह से मुलाकात के सवाल पर बचते नजर आए उन्होंने कहा उनसे हमेशा मुलाकात होती रहती है। वहीं, अशोकनगर में दिग्विजय सिंह ने कहा था कि महाराज गुना आ रहे हैं तो हम उनसे मुलाकात करेंगे। सिंधिया और दिग्विजय की सड़क पर सिर्फ दो मिनट की बातचीत के बाद नया सवाल खड़ा हुआ है और इसे ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है।
केन्द्रीय चुनाव आयोग ने राज्यसभा चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। 26 मार्च को राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। ऐसे में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल है कि राज्यसभा का टिकट किसे दिया जाए। मध्यप्रदेश में राज्य सभा के लिए कई दावेदार हैं। जिन सांसदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है उसमें मौजूदा सांसद दिग्विजय सिंह भी कांग्रेस के दावेदारों की सूची में शामिल हैं। मध्यप्रदेश में इस बार कांग्रेस की सरकार है ऐसे में तीन में से दो सीटें कांग्रेस को मिलने की संभावना है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और अजय सिंह राज्यसभा के प्रबल दावेदार हैं। वहीं, अटकलें यह भी हैं कि एक नेता मध्यप्रदेश का हो सकता है जबकि दूसरा नाम कोई बाहर का नेता हो सकता है।
मध्यप्रदेश में राज्यसभा की 11 सीटें हैं। 3 सीटों का कार्यकाल 2020 में पूरा हो रहा है। जिन सांसदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है उनमें कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, भाजपा के प्रभात झा और पूर्व मंत्री सत्य नारायण जाटिया का है। भाजपा के खाते में एक और कांग्रेस के खाते में एक सीट जाएगी लेकिन तीसरी सीट को लेकर पेंच फंस सकता है। जहां भाजपा को मुश्किलों का सामना कर पड़ सकता है जबकि कांग्रेस के पास संख्या बल है।
राज्यसभा सदस्यों के चुनाव में एक प्रत्याशी को जीतने के लिए कम से कम 58 विधायकों के वोटों की जरूरत है। 2018 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। जबकि कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। भाजपा के पास 107 विधायक हैं। सपा, बसपा और निर्दलीय के सहारे कमलनाथ की सरकार चल रही है। ऐसे में भाजपा के पास अपने दो नेताओं को राज्यसभा भेजने के लिए पर्याप्त संख्या बल नहीं है।