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भोपाल

इफ्तार में बचे थे पांच मिनट, दो घंटे करना पड़ा इंतजार

हवाई जहाज का सफर था। दिल्ली से अरब की यात्रा पर थे। रोजा इफ्तार के लिए पांच मिनट शेष रह बचे थे। इतने में दिल्ली एयरपोर्ट से फ्लाइट ने उड़ान भर दी।

भोपालMay 18, 2018 / 02:04 pm

शकील खान

Mufti Jia Ulla Kasami,

Mufti Jia Ulla Kasami,

– यादगार रोजा …..
– मुफ्ती जिया उल्ला कासमी, नायब सदर जमीयत उलेमा

पांच मिनट बाद रोजा इफ्तार होना था। सामने खजूर चिप्स और इफ्तारी का दूसरा सामान रख रोजा खोलने का इंतजार कर रहे थे। पांच मिनट गुजर चुके थे लेकिन सूरज नहीं डूबा। करीब दो घंटे इंतजार के बाद सूरज डूबा तब जाकर इफ्तार हो पाया। यह वाक्या दिल्ली से अरब की यात्रा के दौरान फ्लाइट का है। पांच मिनट की बजाय दो घंटे के इंतजार ने उस रोजे को मेरे लिए यादगार बना दिया।
यह कहना है मुफ्ती जिया उल्ला कासमी का। इन्होंने बताया दो साल पहले की बात है। हवाई जहाज का सफर था। दिल्ली से अरब की यात्रा पर जा रहे थे। रोजा इफ्तार के लिए केवल पांच मिनट शेष रह बचे थे।
इतने में दिल्ली एयरपोर्ट से फ्लाइट ने उड़ान भर दी। जहाज का रुख पूर्व की तरफ था। ऐसे में डूबने की बजाय सूरज उगता हुआ नजर आया। दिल्ली की जंतरी के हिसाब से रोजा खोलने का समय हो गया था लेकिन फ्लाइट से सूरज चमकता नजर आया। ऐसे में रोजा खोला नहीं जा सकता था। यह सूरज डूबने के बाद भी खोला जाता है। पूरे सफर में करीब इस इंतजार में था कि कब सूरज डूबे। पांच मिनट बाद आना वाला वह पल करीब दो घंटे बाद आया। जहाज से सूरज डूबता दिखाई दिया तब जाकर रोजा खोला। वह ऐसा रोजा था जो यादगार भी बन गया और मुश्किल भी रहा। वह इसलिए की उस दिन सेहरी भी नाम मात्र की हो पाई। उस पर इफ्तार के लिए दो घंटे का इंतजार करना पड़ा।

१० साल की उम्र में रखा था पहला रोजा
कासमी बताते हैं कि रोजा रखते हुए ३० साल से अधिक समय हो गया। कई ऐसे मौके आए जब जिंदगी की भागदौड़ में थोड़ी परेशानी हुई। लेकिन रोजे नहीं छोड़े। इन्होंने बताया कि मैं दस साल का था जब पहला रोजा रखा।

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