राजधानी के अनिल वर्मा ने बताया कोरोनाकाल में लोगों की परेशानी को देख उसे कविताओं के जरिए लोगों के सामने रखा। इसके अलावा पर्यावरण, रोजगार सहित कई दूसरे मुद्दों को उठाया। इसी दिशा में काम कर रहे हैं। जॉब के साथ ही पर्यावरण सुधार और दूसरे मामलों में काम कर रहे लोगों के साथ जुड़कर भी काम शुरू किया है। ताकि लोगों की मदद भी की जा सके।
इसी तरह राजधानी के फैसल मतीन एक आर्टिस्ट के रूप में इस दिशा में काम कर रहे हैं। कोरोनाकाल से जुड़े कई दृश्यों को इन्होंने अपनी पेंटिंग में दर्शाया है। कई ऐसे मुद्दों की ओर भी इन्होंने कलाकारी की है जिनको अनदेखा किया जा रहा था। इसमें हेरिटेज से लेकर पर्यावरण जैसे मुद्दे शामिल हैं। इनको राष्ट्रीय स्तर पर इसको पहचान मिली है। अंतराष्ट्रीय मंच पर भी कोविड के दौर की याद के रूप में इन्हें पहचाना जाता है।
अनिल वर्मा बताते हैं कि अब तक अब तक जो भी कविताएं लिखी उनमें सामाजिक मुद्दों को आधार बनाया। इनमें सबसे ज्यादा पर्यावरण पर आधारित हैं। कविताओं के जरिए पेड़ों को आवाज देने की कोशिश की है।
एक पेड़ की व्यथा बताती एक रचना मुझे भी दर्द होता है,
मैं भी चीखता हूँ , कराहता हूँ,
जब तुम मुझे काटते हो।
मैं फैलाता हूँ अपनी टहनियों को
पर तुम काट देते हो।
कतर कतर कर
मुझे कई आकार देते हो।
बनाकर आलीशान बगीचा, पार्क
मेरी नुमाइश लगाते हो।
मैं भी चीखता हूँ , कराहता हूँ,
जब तुम मुझे काटते हो।
मैं फैलाता हूँ अपनी टहनियों को
पर तुम काट देते हो।
कतर कतर कर
मुझे कई आकार देते हो।
बनाकर आलीशान बगीचा, पार्क
मेरी नुमाइश लगाते हो।
तुमने उन टहनियों को क्यों हटाया?
जिस पर कभी तोते ने मैना से प्रेम जताया।
जिस पर कोयल ने गीत सुनाया।
जिस पर बैठकर संकटमोचन ने मेरा फल खाया।
जिस पर मधुमाखी ने मेरे मधु से छत्ता सजाया।
जिस पर परिंदों ने अपना आशियाना बनाया।
मैंने हवा से कालिख निगलकर तुम्हे साँसे दी।
तुम्हारी साँसे टूटी तो टहनियों ने चिता बनाई।
जिस पर कभी तोते ने मैना से प्रेम जताया।
जिस पर कोयल ने गीत सुनाया।
जिस पर बैठकर संकटमोचन ने मेरा फल खाया।
जिस पर मधुमाखी ने मेरे मधु से छत्ता सजाया।
जिस पर परिंदों ने अपना आशियाना बनाया।
मैंने हवा से कालिख निगलकर तुम्हे साँसे दी।
तुम्हारी साँसे टूटी तो टहनियों ने चिता बनाई।
मत काटो मेरी टहनियों को……
मुझे भी दर्द होता है..!
मुझे मत काटो…. ।।
मुझे भी दर्द होता है..!
मुझे मत काटो…. ।।