अपराजिता की ज्वाइनिंग से राज्य इकाई में हलचल है। चर्चा है कि उन्हें पार्टी भुवनेश्वर से लोकसभा चुनाव में उतार सकती है। भुवनेश्वर म्युनिसपल्टी में कमिश्नर पद पर तैनाती के दौरान किए गए विकास कार्यों को लोग आज भी सराहते हैं। अपराजिता कहती हैं कि केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर पांच साल की तैनाती के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को देखा परखा। उनके कामकाज से वह प्रभावित हैं। विकास कार्यों में गतिशीलता बनाए रखने के लिए उनकी कोशिश से प्रभावित होकर वह बीजेपी में शामिल हुई हैं। उन्होंने सिंतबर में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के लिए आवेदन किया था। इसका एप्रूवल 16 नवंबर को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया। कार्मिक प्रशासन मंत्रालय उन्हीं के अधीन है।
ब्यूरोक्रेट्स की राजनीति में चुनावी पारियां बहुत ज्यादा सफल नहीं रही हैं। विश्लेषक मानते हैं कि यदि अपराजिता षाड़ंगी सफल राजनीतिक पारी खेल जाती है तो आश्चर्य ही होगा। पूर्व ब्यूरोक्रेट खरवेला स्वैं, प्यारी मोहन महापात्र, जतीशचंद्र महंति उदाहरण हैं। प्यारी मोहन महापात्र की पार्टी जनमोर्चा और खरवेला स्वैं की उत्कल भारत पार्टी सफल नहीं रहीं। इसी तरह जतीश बाबू की समृद्ध ओडिशा भी सफल नहीं रहीं। देखने मे लगता है कि ब्यूरोक्रेट सफल राजनेता हो सकते हैं पर जब पब्लिक में वोट मांगने जाते हैं तो उनका ज्यादा असर नहीं पड़ता।