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भुवनेश्वर

OdishaNews: मां होते हुए भी अनाथ हो गई एक लाडा़े…

OdishaNews: एक मां अपने कलेजे के टुकड़े को कैसे खुद से जुदा ( Seperated ) कर सकती है। अपने नवजात ( Infant ) को पालने मे असमर्थ होने के कारण सरकारी अस्पताल की चौखट पर छोड़ आई।

भुवनेश्वरSep 19, 2019 / 08:11 pm

Yogendra Yogi

मां होते हुए भी अनाथ हो गई एक लाडा़े...

मां होते हुए भी अनाथ हो गई एक लाडा़े…

OdishaNews: भुवनेश्वर/मलकानगिरि ( महेश शर्मा ), एक मां अपने कलेजे के टुकड़े ( Piece of Heart ) को कैसे खुद से जुदा ( Seperated ) कर सकती है। यह विचारणीय प्रश्न बेशक हो सकता है, किन्तु जब गरीबी ( Poverty ) का दानव मुंह फाड़े खड़ा हो तो मां भी बेबस ( Poor Mother ) हो जाती है। ऐसी ही एक बेबस मां अपने नवजात ( Infant ) को पालने मे असमर्थ होने के कारण सरकारी अस्पताल की चौखट पर छोड़ आई। उसके सामने सवाल यही था कि खुद दो वक्त की रोटी के लिए हर दिन जूझती है तो अपनी बेटी का पेट कैसे भरेगी। वह बेटी को भूख से मरता हुआ नहीं देख सकती। उसके कंकाल बन गए शरीर में इतनी जान नहीं रही कि बेटी को मां का दूध नसीब हो सके।
पति की मौत के बाद पाई-पाई को तरस गई
इसी मजबूरी के चलते बेहद गरीबी के कारण एक प्रसूता ने नवजात को साथ रखने से इनकार कर दिया। गरीबी की मार के सामने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे सरकारी जुमले इस लाचार आदिवासी मां के काम नहीं आ सके। उसका कहना था कि पति की मौत के ( Death of Husband ) बाद वह पाई-पाई को तरस रही है। पहले ही उसके दो बच्चे हैं जिनकी परवरिश बहुत मुश्किल से हो रही है। अब इसे कैसे पाल पाएगी। उसका कहना था कि वह बिलकुल भी नहीं पालना चाहती है। बच्चा फिलहाल सरकारी अस्पताल के एनसीयू (निओनेटल केयर यूनिट) में है।
दो बच्चों का बोझ पहले ही है
यह दर्दनाक दास्तान है उस दुखियारी मां कि जिसने अपनी बेटी को मलकानगिरि जिला के बलिमेला अस्पताल में छोड़ दिया। यह जनपद गरीबी और भुखमरी के लिए जाना जाता है। ज्यादा दूरदराज जंगलों में आदिवासी आबादी रहती है। जन्म देने वाली महिला भी आदिवासी परिवार की है। सूत्रों के अनुसार कोरकुंडा ब्लाक के चितापारी गांव की इस महिला को 13 सितंबर को अस्पताल में लेबर पेन की शिकायत पर भरती कराया गया था। उसने एक बच्ची को जन्म दिया जिसे बाद में उसने लेने से इंकार कर दिया। कारण पूछने पर उसने बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। पहले ही उसके एक बेटा आठ साल और बेटी पांच साल की है। अब इस बच्ची को कैसे पालेगी।
बच्ची जाएगी गोद
गरीबी के कारण वह खुद पैसे पैसे को मोहताज है। आशा वर्कर का कहना है कि वह महिला को अस्पताल लेकर आई थी। उसका कहना है कि उसने महिला को गर्भपात से मना करते हुए बच्चे को जन्म देने की सलाह दी थी। लेबरपेन के कारण उसे अस्पताल ले आई। जन्म के बाद चाइल्ड लाइन और चाइल्ड केयर कमेटी ने उसे मलकानगिरि के जिला अस्पताल स्थित सिक नियोनेटल केयर यूनिट में शिफ्ट करा दिया था। उसके स्वस्थ होने पर उसे स्पेलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसी को सौंप दिया जाएगा। वहां बच्ची एडॉप्शन के प्रोसेस में आ जाएगी। जिला बाल सरंक्षण अधिकारी नारायन दास ने बताया कि जब भी कोई गोद लेने वाला दंपत्ति आएगा तो बच्ची को सौंप दिया जाएगा।

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