हालांकि लगातार फोकस के कारण दावा किया जाता है कि भाजपा कम से कम दो राज्यों में सीटें बढ़ाने में कामयाब हो सकती है, बशर्ते मोदी खुद ओडिशा के किसी क्षेत्र से चुनाव लड़ें। यूं तो उनके पुरी (जगन्नाथ) संसदीय क्षेत्र से अटकलें लगाई जा रही हैं पर इन दिनों अटकलों को काफी बल मिला। सूत्र बताते हैं कि रणनीतिकारों ने मोदी को बता भी दिया है कि 2019 में दिल्ली पहुंचने का रास्ता अबकी ओडिशा से जाएगा। यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि मोदी या फिर अमित शाह यहां से लड़ सकते हैं। यदि मोदी लड़ते हैं तो उन्हें बाद में एक सीट छोड़नी पड़ सकती है।
फिलहाल बीजेपी का गुणा-भाग ओडिशा में कम से कम 16 सीटें हासिल करने को लेकर है। सरकार बनने के बाद से अब तक मोदी ने दस सभाएं ओडिशा में की हैं। जिला परिषद चुनाव में 36 सीटों से तीन सौ से ऊपर पहुंचने के कारण बीजेपी उत्साह से लबरेज है। इस सफलता से यहां पर कांग्रेस को तीसरे नंबर पर आंका जाने लगा है। पार्टी की दो दिवसीय नेशनल एक्जीक्यूटिव भी भुवनेश्वर में 15 अप्रैल 2017 को हुई थी। तभी पार्टी ने कोरोमंडल (तटीय राज्यों) का गेट भुवनेश्वर घोषित कर दिया गया था। भाजपा की ओडिशा इकाई के अध्यक्ष बसंत पंडा का कहना है कि अप्रैल 2017 को नेशनल एक्जीक्युटिव की मीटिंग में ही प्रधानमंत्री से अनुरोध किया गया था और इस आशय का प्रस्ताव भी दिया है। फैसला पार्टी का होगा।
कोरोमंडल (पूर्वी और तटीय) राज्यों में लोकसभा की 160 सीटें हैं, जहां पर बीजेपी काफी कमजोर दिखती है। पार्टी का कहना है कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल से काफी उम्मीदें हैं। ओडिशा में 21 में एक तथा पश्चिम बंगाल में 42 में दो सीटें बीजेपी के पास हैं। पार्टी के लोग कहते हैं कि बीजेपी का मिशन कोरोमंडल का रास्ता ओडिशा से होकर जाता है। यही नहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ओडिशा में मिशन 120+ शुरू कर दिया है। उनका दावा है कि राज्य की 147 में से 120 से ज्यादा सीटें बीजेपी की आ सकती हैं। मोदी की सभाओं में भीड़ जुटना बेहतर संकेत माने जा रहे हैं। हालांकि एक समय 2004 में कांग्रेस को रोकने के लिए भाजपा और बीजेडी ने गठबंधन किया था और 93 सीटें जीती थी। नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने 93 सीटों पर लड़ा और 61 जीतीं थी।