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भुवनेश्वर

ओडिशा:विधान परिषद के गठन को मंत्रिमंडल की मंजूरी,मानसून सत्र में पारित होगा प्रस्ताव

यह जानकारी संसदीय कार्य मंत्री विक्रम रुख ने दी…

भुवनेश्वरAug 24, 2018 / 04:44 pm

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(पत्रिका ब्यूरो,भुवनेश्‍वर): ओडिशा सरकार ने विधान परिषद के गठन का मार्ग प्रशस्त कर लिया है। मंत्रिमण्डल की बैठक में उक्त प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब 4 सितम्बर से होने वाले मानसून सत्र में विधान परिषद के प्रस्ताव पर चर्चा करके इसे अग्रसारित कर दिया जाएगा। यह जानकारी संसदीय कार्य मंत्री विक्रम रुख ने दी।

 

अध्ययन दल ने विधान परिषद के गठन की रिपोर्ट मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को 6 जुलाई को सौंप दी है। इसके सदस्यों ने बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र व कर्नाटक का दौरा करने के बाद रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट को विधानसभा के मॉनसूत्र सत्र में चर्चा के लिए रखा जाएगा। वहां से पारित करने के बाद लोकसभा और राज्यसभा में औपचारिक मंजूरी को भेजा जाएगा। राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद विधान परिषद के गठन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। विपक्ष इसे बीजू जनता दल के भीतर उत्पन्न असंतोष को दबाने के लिए नवीन पटनायक की रणनीति की दृष्टि से देखता है। इसी पार्टी की सरकार भी है।


राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि जिला परिषद चुनाव में भाजपा का बढ़ता ग्राफ देखकर चिंतित पटनायक ने असंतुष्टों को संतुष्ट करने तथा प्रमुख प्रभावशाली बौद्धिक वर्ग को विधानपरिषद में समायोजित करने की रणनीति बनाई है। ओडिशा विधानसभा में सदस्यों की संख्या के अनुपात के हिसाब से 49 सदस्य तक विधानपरिषद में आ सकते हैं। यानी परिषद के कुल सदस्यों की संख्या 49 होगी। विधान परिषद गठन प्रक्रिया मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 2015 में शुरू करा दी थी। परिवहन मंत्री नृसिंह चरण साहू की अध्यक्षता में बीजद, भाजपा तथा कांग्रेस के विधायकों की टीम बनाकर प्रदेशों का दौरा कर विधान परिषदों के कामकाज को समझने को भेजा था।


साहू कहते हैं कि द्विसदनात्मक प्रणाली के कामकाज का अध्ययन करने के बाद मुख्यमंत्री पटनायक को रिपोर्ट सौंप दी गई है। विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 33 प्रतिशत सदस्य विधान परिषद में कम से कम होने चाहिए। ओडिशा में 147 विस सदस्य हैं। इस प्रकार ओडिशा में विधान परिषद गठित होने की स्थिति 49 सदस्य होंगे। किसी भी विधान परिषद में न्यूनतम सदस्य संख्या 40 होनी चाहिए। बीजद प्रवक्ता सुलोचना दास कहती हैं कि विधानपरिषद उच्च सदन कहलाता है जिसमें विधिक प्रक्रिया में किसी व्यवसाय के बौद्धिक वर्ग को जोड़ा जा सकता है। सुलोचना के अनुसार विपक्ष के विरोध की परवाह पार्टी नहीं करती। द्विसदनात्मक प्रणाली आंतरिक लोकतंत्र को मजबूती देता है।


भाजपा के प्रवक्ता पीताम्बर आचार्य का कहना है कि बीजद में भीतर ही भीतर पनप रहे असंतोष को दबाते हुए उन्हें विप में समायोजित करने का खेल है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष निरंजन पटनायक का कहना है कि चुनाव के कुछ महीने रह गए हैं ऐसे में विधानपरिषद गठन की प्रक्रिया साफ है कि बीजद में असंतोष फूटने वाला है।


विधान परिषद देश के कुछ राज्यों में ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। इसके सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के जरिए सदन में पहुंचते हैं। कुछ राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। यह व्यवस्था आंध्र, बिहार, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तरप्रदेश में है। संविधान के अनुच्छेद 169, 171 (2) में विधानपरिषद के गठन का प्रावधान है। राज्य की विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव लोकसभा भेजा जाता है। राज्यसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति के दस्तखत होते हैं। विधानपरिषद के सदस्यों का कार्यकाल छह साल का होता है। हर दो साल एक तिहाई सदस्य हट जाते हैं। यह व्यवस्था राज्यसभा की तरह ही होती है।

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